Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti
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अष्टपाहुडमें शीलपाहुडकी भाषावचनिका।
४१३
ताहि तनैं मुनिराय पाय निज शुद्धरूप जल,
धोय कर्मरज होय सिद्धि पावै सुख अविचल ॥ यह निश्चय शील सुब्रह्ममय व्यवहारै तियतज नमै । जोपालै सबविधि तिनि नमूंपाऊंजिन भव न जनम मैं।
दोहा। नमूं पंचपद ब्रह्ममय मंगलरूप अनूप । उत्तम शरण सदालहूं फिरि न पलं भवकूप ॥२॥ इति श्रीकुन्दकुन्दाचार्यस्वामि प्रणीत शीलप्राभृकी जयपुरनिवासि पं. जयचन्द्रजी छाबड़ाकृत
देशभाषामयवचनिका समाप्त ॥ ८॥

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