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अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका ।
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____ अर्थ-जो भव्यपुरुष जीवकू भावता संता भले भावकरि संयुक्त भया जीवका स्वभावकू जाणि करि भावै सो जरा मरणका विनाशकरि प्रगट निर्वाणकू पावै है। ___ भावार्थ-जीव ऐसा नाम तो लोकमैं प्रसिद्ध है परन्तु याका स्वभाव कैसा है ऐसा लोककै यथार्थ ज्ञान नाहीं अर मतांतरके दोपते याका स्वरूप विपर्यय होय रह्या है तातें याका यथार्थ स्वरूप जांनि भाबें हैं ते संसार” निवृत्त होय मोक्ष पावै हैं ॥ ६१ ॥
आज जीवका स्वरूप सर्वज्ञदेव कह्या है सो कहै है,गाथा--जीवो जिणपण्णत्तो णाणसहाओ य चेयणासहिओ।
सो जीवो णायव्वो कम्मक्खयकरणणिम्मित्तो ॥६२॥ संस्कृत-जीवः जिनप्रज्ञप्तः ज्ञानस्वभावः च चेतनासहितः ।
सः जीवः ज्ञातव्यः कर्मक्षयकरणनिमित्तः ॥६२॥ अर्थ-जिन सर्वज्ञ देव जीवका स्वरूप ऐसा कह्या है;-जीव है सो चेतनासहित है बहुरि ज्ञानस्वभाव है, ऐसा जीवका भावनां कर्मका क्षयकै निमित्त जाननां ॥ ..
भावार्थ-जीवका चेतनासहित विशेषण कियातें तौ चार्वाक जीवकू चेतनासहित न मान है ताका निराकरण है । बहुरि ज्ञानस्वभावविशेषण" सांख्यमती ज्ञान• प्रधान धर्म मानै है जीवकू उदासीन नित्य चेतनारूप माने है ताका निराकरण है, तथा नैयायिकमती गुण गुणीका भेद मांनि ज्ञानकू सदा भिन्न मानै है ताका निराकरण है । बहुरि ऐसा जीवका स्वरूपका भावनां कर्मका क्षयकै निमित्त होय है, अन्य प्रकार भया मिथ्याभाव है ॥ ६२॥
आगें कहै है जो जे पुरुष जीवका अस्तित्व मानें हैं ते सिद्ध होय है;