Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 433
________________ ३९० पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित __ भावार्थ-ज्ञान है सो आत्माका प्रधान गुण है परन्तु मिथ्यात्व विषयनितें मलिन है या मिथ्यात्वविषयनिरूप मलकू दूरिकरि याकी भावना करै याका एकाग्रकरि ध्यान करै तौ कर्मनिका नाश करे, अनंतचतुष्टय पाय मुक्त होय शुद्ध आत्मा होय है; तहां सुवर्णका दृष्टान्त है सो जाननां ॥९॥ ___ आगैं कहै है जो ज्ञान पाय विषयासक्त होय है सो ज्ञानका दोष नाही है, कुपुरुषका दोष है;गाथा-णाणस्स णत्थि दोसो कप्पुरिसाणो वि मंदबुद्धीणो । जे णाणगविदा होऊणं विसएसु रजति ॥१०॥ संस्कृत-ज्ञानस्य नास्ति दोषः कापुरुषस्यापि मंदबुद्धेः । ये ज्ञानगर्विताः भूत्वा विषयेषु रजन्ति ॥१०॥ अर्थ-जे पुरुष ज्ञानगर्वित होयकरि ज्ञानमदकरि विषयनिविर्षे रंजित होय है सो यह ज्ञानका दोष नाही है ते मंदबुद्धि कुपुरुष हैं तिनिका दोष है॥ ___ भावार्थ-कोई जानैगा कि ज्ञानकरि बहुत पदार्थनिकू जानै तब विषयनिमैं रंजायमान होय है सो यह ज्ञानका दोष है; तहां आचार्य कहै है-ऐसैं मति जानो-ज्ञान पाय विषयनिमैं रंजमान होय है सो यह ज्ञानका दोष नाही है-यह पुरुष मंदबुद्धि है अर कुपुरुष है ताका दोष है, पुरुषका होणहार खोटा होय तब बुद्धि बिगडजाय तब ज्ञान• पाय अर ताका मदमैं छकि जाय विषय कषायनिमैं आसक्त होय सो यह दोष पुरुषका है, ज्ञानका नाही । ज्ञानका तौ कार्य वस्तुकू जैसा होय तैसा जनायदेनाही है पीछे प्रवर्त्तनां पुरुषका कार्य है, ऐसें जाननां ॥ १० ॥ आण कहै है-पुरुषकै ऐसैं निर्वाण होय है;

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