________________
अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका । २३७
आगैं क्षमाका फल कहै है;
गाथा - पावं खवड असेसं खमाय पडिमंडिओ य मुणिपवरो । खेयरअमरणराणं पसंसणीओ धुवं होइ ॥ १०८ ॥
संस्कृत - पापं क्षिपति अशेषं क्षमया परिमंडितः च मुनिप्रवरः । खेचरामरनराणां प्रशंसनीयः ध्रुवं भवति ॥ १०८ ॥
अर्थ — जो मुनिप्रवर मुनिन मैं श्रेष्ठ प्रधान क्रोधके अभावरूप क्षमा करि मंडित है सो मुनि समस्त पापकूं क्षय करें है, बहुरि विद्यावर देव मनुष्यनिकरि प्रशंसा करनेयोग्य निश्चयकरि होय है ॥
भावार्थ-क्षमा गुण बडा प्रधान है जातै सर्वकै स्तुति करनेयोग्य पुरुष होय, जे मुनि हैं तिनिकै उत्तमक्षमा होय है ते तौ सर्व मनुष्य देव विद्याधरनिकै स्तुतियोग्य होयही होय अर तिनिकै सर्व पापका क्षय होयही होय, तातैं क्षमा करनां योग्य हैं ऐसा उपदेश है। क्रोधी सर्वकै निंदने योग्य होय हैं तातैं क्रोधका छोडनां श्रेष्ठ हैं ॥ १०८ ॥
आगैं ऐसैं क्षमागुण जांनि क्षमा करनां क्रोध छोडनां ऐसें कहै है; गाथा -- इय पाऊण खमागुण खमेहि तिविहेण सयलजीवाणं । चिरसंचियकोहसिहिं वरखमसलिलेण सिंचेह ॥ १०९ ॥ संस्कृत - इति ज्ञात्वा क्षमागुण ! क्षमस्व त्रिविधेन सकलजीवान् । चिरसंचितक्रोधशिखिनं वरक्षमासलिलेन सिंच १०९
अर्थ — हे क्षमागुण मुने ! क्षमा है गुण जाकै ऐसा मुनिका संबोधन है, इति कहि पूर्वोक्त प्रकार क्षमागुणकूं जाणि अर सकलजीवनिपरि मन वचन कायकरि क्षमाकरि, बहुरि बहुत काल करि संचय किया जो क्रोधरूप अग्नि ताहि क्षमारूप जलकर सींचि बुझाय ॥
भावार्थ — क्रोधरूप अग्नि है सो पुरुष मैं भले गुण हैं तिनिकूं द करनेवाला है अर परजीवनिका घात करनेवाला है तातें याकूं क्षमारूप