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अष्टपाहुडमें लिंगपाहुडकी भाषावचनिका। ३७३ व्यापार विणज वैश्यका कार्य अर जीवघात कहिये वैद्यकर्मके अर्थ जीवघात करना अथवा धीवरादिकका कार्य इनि कार्यनिकू करै है सो लिंगरूपकार ऐसे करता पापी नरककू प्राप्त होय है ॥
भावार्थ-गृहस्थचारा छोडि शुभ भाव विना लिंगी भया था, याकी भावकी वासना मिटी नाही तब लिंगीका रूप धारि करिभी करनेलगा आप विवाह न करै तौऊ गृहस्थनिकै सणपण कराय विवाह करावै तथा खेती विणज जीवहिंसा आप करै तथा गृहस्थनिकू करावै, तब पापी भया संता नरक जाय। ऐसे भेष धारनेंतें तो गृहस्थही भला था, पदवीका पाप तौ न लागता, तातें ऐसा भेष धारणां उचित नाही यह उपदेश है ॥ ९॥
आज फेरि कहै है;गाथा-चोराण लोउराण य जुद्ध विवादं च तिव्वकम्महि ।
जंतेण दिव्यमाणो गच्छदि लिंगी णरयवासं ॥१०॥ संस्कृत-चौराणां लापराणां च युद्धं विवादं च तीव्रकर्मभिः ।
यंत्रेण दीव्यमानः गच्छति लिंगी नरकवासं ॥१०॥ ___ अर्थ-जो लिंगी ऐसैं प्रवत्र्ते है सो नरकवासकुँ प्राप्त होय है जो चौरनिके अर लापर कहिये झूठ बोलनेवालानिकै युद्ध अर विवाद करावै है बहुरि तीव्रकर्म जो जिनिमैं बहुत पाप उपजै ऐसे तीव्र कषायनिके कार्य तिनिकरि तथा यंत्र कहिये चौपडि सतरंज पासा हिंदोला आदि ताकरि क्रीडा करता संता वत्” है, ऐसैं वरतता नरक जाय है । इहां 'लाउराणं का पाठांतर ऐसाभी है राउलाणं,' याका अर्थ-रावल कहिये राजकार्य करनेवाले तिनिकै युद्ध विवाद करावै, ऐसें जाननां ॥
१-मुद्रित सटीक संस्कृत प्रतिमें 'समाएण' ऐसा पाठ है जिसकी छाया 'मिथ्यावादिनां' इस प्रकार है।