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अष्टपाहुडभाषा वचनिका ।
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बहुरि अतत्वविर्षे तत्वपणांका श्रद्धान सो मूढदृष्टि है। ऐसे मूढदृष्टि जाके नहीं होय सो अमूढदृष्टि है। तहां मिथ्यादृष्टीनिकरि खोटे हेतु दृष्टांतकरि साध्या पदार्थ है सो सम्यग्दृष्टीकू प्रीति नांही उपजा है। बहुरि लौकिक रूढी अनेक प्रकार है सो यह निःसार है, निःसार पुरुषनिकरि ही आचरिए है, अनिष्ट फलकी देनहारी हैं तथा निष्फल है तथा जाका खोटा फल है तथा ताका किळू हेतु नाही ताका किळू अर्थ नाही, जो किळू लोक रूढ़ि चलिपड़े सो लोक आदरिले फेरि ताका त्यजनां कठिन होय जाय इत्यादि लोकरूढि हैं । बहुरि अदेवविर्षे तौ देवबुद्धि अधर्मविषै धर्मबुद्धि, अगुरुविर्षे गुरुबुद्धि इत्यादि देवादिक मूढता हैं सो यह कल्याणकारी नाही । सदोष देवकू देव माननां, बहुरि तिनिके निमित्त हिंसादिकरि अधर्मकू धर्म माननां, बहुरि खोटा आचारवान शल्यवान परिग्रहवान सम्यक्त्वव्रतरहित• गुरु माननां इत्यादि मूढ़ दृष्टिके चिह्न हैं । अब इहां देव धर्म गुरु कैसै होय तिनिका स्वरूप जान्या चाहिये, सो ही कहिये है--तहां रागादिक दोष अर ज्ञानावरणादिक कर्म सो ही आवरण, ये दोज जाकै नांही सो देव है; ताकै केवलज्ञान केवलदर्शन अनंतसुख अनतर्वार्य ये अनंतचतुष्टय होय हैं । सो सामान्य तौ देव ऐसा एक है अर विशेषकरि अरहंत सिद्ध ऐसे दोय भेद हैं, बहुरि इनिके नामभेदके भेदकरि भेद करिये तब हजारां नाम हैं । बहुरि गुणभेद करिए तब अनंत गुण हैं। तहां परम
औदारिक देह विर्षे तिष्टया घातियाकर्मरहित अनंतचतुष्टयसहित धर्मका उपदेश करनहारा ऐसा तो अरहंत देव है । बहुरि पुद्गलमयी देहसूरहित लोकके शिखर निष्ठया सम्यक्त्वादिक अष्टगुणमंडित अष्टकर्मरहित ऐसा सिद्ध देव है, इनिके अनेक नाम हैं-अरहंत, जिन, सिद्ध, परमात्मा, महादेव, शंकर, विष्णु, ब्रह्मा, हरि, बुद्ध, सर्वज्ञ, वीतराग परमात्मा.