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पंडित जयचंदजी छावड़ा विरचित
___ अर्थ-आचार्य कहै है जो बहुत कहनेकरि कहा साध्य है जे नरप्रधान अतीतकालवि. सिद्ध भये अर आगामी कालविषै सिद्ध होयगे सो सम्यक्त्वका माहात्म्य जानो ॥
भावार्थ-इस सम्यक्त्वका ऐसा माहात्म्य है जो अष्टकर्मका नाश करि जे मुक्तिप्राप्त अतीतकालमैं भये है तथा आगामी होयगे ते इस सम्यक्त्व ही भये है अर होयगे, तातैं आचार्य कहै हैं जो बहुत कहनेकरि कहा! यह संक्षेपकरि कह्या जानो जो-मुक्तिका प्रधान कारण यह सम्यक्त्वही है। ऐसा मति जानो जो गृहस्थके कहा धर्म है सो यह सम्यक्त्वधर्म ऐसा है जो सर्व धर्मनिके अंगनिकू सफल करै है ॥८८॥
आनें कहै है जो-निरन्तर सम्यक्त्व पालै है ते धन्य हैगाथा--ते धण्णा सुकयत्था ते मूरा ते वि पंडिया मणुया ।
सम्मत्तं सिद्धियरं सिविणे वि ण मइलियं जेहिं ॥८९॥ संस्कृत-ते धन्याः सुकृतार्थाः ते शूराः तेऽपि पंडिता मनुजाः।
सम्यक्त्वं सिद्धिकरं स्वप्नेऽपि न मलिनितं यैः ॥८९।। अर्थ-जिनि पुरुषनितें मुक्तिका करनेवाला सम्यक्त्व है ताकू स्वप्नावस्थाविर्षे भी मलिन न किया अतीचार न लगाया ते पुरुष धन्य हैं ते ही मनुष्य हैं ते ही भले कृतार्थ हैं ते ही शूरवीर हैं ते ही पंडित हैं ॥ ___ भावार्थ-लोकमैं कछू दानादिक करे तिनि• धन्य कहिये है तथा विवाहादिक यज्ञादिक करें हैं तिनिकू कृतार्थ कहै हैं युद्धमैं पाछा न होय ताक् शूरवीर कहैं हैं, बहुत शास्त्र पढे ताकू पंडित कहै हैं। ये सारे कहनेके हैं जो मोक्ष का कारण सम्यक्त्व ताकू मलिन न करें हैं निरतिचार पालैं हैं ते धन्य हैं ते ही कृतार्थ हैं ते ही शूरवीर है तेही पंडित हैं ते ही मनुष्य हैं; या विना मनुष्य पशुसमान है, ऐसा सम्यक्त्वका माहात्म्य कह्या ॥ ८९ ॥