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अष्टपाहुडमें सूत्रपाहुडकी भाषावचनिका। ६९ करे तो सामर्थ्यही नहीं होय तब संयम नहीं सधै तातै किछू योग्य आहार विधिपूर्वक शरीरसूं रागरहित भये संते लेकरि शरीरकू खड़ा राखि संयम साधै है । बहुरि कमंडलु बाह्य शौचका उपकरण है जो नहीं राखै तौ मलमूत्रकी अशुचिताकरि पंच परमेष्ठीकी भक्ति वंदना कैसे करै अर लोकनिंद्य होय । बहुरि पीछी दयाका उपकरण है जो नहीं राखै तौ जीवनिसहित भूमि आदिकी प्रति लेखना काहेरौं करै । बहुरि पुस्तक है सो ज्ञानका उपकरण है जो नहीं राखै तौ पठन पाठन कैसे होय । बहुरि इनि उपकरणनिका राखनां भी ममत्वपूर्वक नाही है तिनितें रागभाव नांही है । बहुरि आहार विहार पठन पाठनकी क्रियायुक्त जेतें रहै तेरौं केवलज्ञान भी नांही उपजै है तिनि सर्व क्रियानिकू छोडि शरीरका भी सर्वथा ममत्व छोडि ध्यान अवस्था लेकरि तिष्ठै अपनां स्वरूपमैं लीन होय तब परम निग्रंथ अवस्था होय है तब श्रेणाकू प्राप्त भये मुनिराजकैं केवलज्ञान उपजै है अन्य क्रियासहित होय तेतैं केवलज्ञान नाही उपजै है ऐसा निग्रंथपणां मोक्षमार्ग जिनसूत्रमैं कह्या है। __ श्वेतांबर कहै है जो भवथिति पूरी भये सर्व अवस्थामैं केवलज्ञान उपजै है सो यह कहनां मिथ्या है, जिनसूत्रका यह वचन नांही तिनि श्वेतांबरनि. कल्पित सूत्र बनाये हैं तिनिमैं लिखी होगी । बहुरि इहां श्वेतांबर कहै जो तुमनें कह्या सो तो उत्सगमार्ग है, बहुरि अपवादमार्गमैं वस्त्रादिक उपकरण राखनां कह्या है जैसे तुम धर्मोपकरण कहे तैसैंही वस्त्रादिक भी धर्मोपकरण हैं जैसैं क्षुधाकी बाधा आहारतें मेटि संयम साधिये है तैसे ही शीत आदिकी बाधा वस्त्र आदितै मेटि संयम साधिये यामैं विशेष कहा ? ता• कहिये जो यामैं तो बडे दोष आवे हैं, तथा कोई कहैं कामविकार उपजै तब स्त्रीसेवन करै तौ यामैं कहा विशेष ? सो ऐसैं कहनां युक्त नाही । क्षुधाकी बाधा तो आहारतें मेटनां युक्त है आहारविना देह अशक्त