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अष्टपाहुडमें सूत्रपाहुडकी भाषावचनिका । ७३
नमः विमोक्षमार्गः शेषा उन्मार्गकाः सर्वे ॥ २३ ॥ अर्थ-जिनशासनविर्षे ऐसा कह्या है जो वस्त्रका धरनेवाला सीझै नांही मोक्ष नाही पावैहै जो तीर्थकरभी होय तौ जेते गृहस्थ रहै तेरौं मोक्ष न पावै, दीक्षा लेय दिगंबर रूप धारै तब मोक्ष पावै जातें नग्नपणां है सो ही मोक्षमार्ग है अब शेष कहिये बाकी सर्व लिंग उन्मार्ग हैं ॥२३॥
भावार्थ-श्वेतांबर आदिक वस्त्रधारीकैभी मोक्ष होनां कहै है सो मिथ्या है यह जिनमत नाही ॥ २३ ॥ ___ आगें स्त्रीनिकू दीक्षा नाही ताका कारण कहैहै;गाथा-लिंगम्मि य इस्थीणं थणंतरे णाहिकक्खदेसेसु ।
भणिओ सुहमो काओ तासिं कह होइ पव्वज्जा । संस्कृत-लिंगे च स्त्रीणां स्तनांतरे नाभिकक्षदेशेषु ।
भणितः सूक्ष्मः कायः तासां कथं भवति प्रवज्या॥२४॥ अर्थ-स्त्रीनिके लिंग कहिये योनि जा वि तथा स्तनांतर कहिये दोऊ कुचनिके मध्यप्रदेशवि तथा कक्ष कहिये दोऊ कांखनिविर्षे नाभिविर्षे सूक्ष्मकाय कहिये दृष्टिके अगोचर जीव कहे हैं सो ऐसी स्त्रीनिकै प्रव्रज्या कहिये .दीक्षा कैसे होय ॥
भावार्थ-स्त्रीनिकै योनि स्तन कांख नाभि विर्षे पंचेंद्रियजीवनिकी उत्पत्ति निरंतर कहीहै तिनिकै महाव्रतरूप दीक्षा कैसै होय । बहुरि महाव्रत कहे हैं सो उपचार करि कहे हैं परमार्थ नाही, स्त्री आपनां साम
खंकी हद्दवू पहुंचि व्रत धरै है तिस अपेक्षा उपचारतें महाव्रत कहे है ॥ २४ ॥
(१) लिखित वचनिका प्रतियों में अर्थ और भावार्थ दोनोंही स्थानों में 'नाभि' का जिक्र नहीं कियाहै सो गाथाके अनुसार होना युक्त समझ लिखाहै ।