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अष्टपाहुडमें बोधपाहुडकी भाषावचनिका । १५३.
भावार्थ-तप व्रत सम्यक्त्व इनिकरि सहित अर इनके मूलगुण अर अचारनिका सोधनां जामैं होय ऐसी दीक्षा शुद्ध है, अन्यं वादी तथा. श्वेतांबरादि जैसे तैसें कहें हैं सो दीक्षा शुद्ध नांही ॥ २५ ॥
आगें प्रव्रज्याका कथन संकोच है; -
गाथा - एवं आयत्तणगुणपज्जत्ता बहुविसुद्धसम्मत्ते । णिग्गंथे जिनमग्गे संखेवेणं जहाखादं ॥ ५९ ॥ संस्कृत - एवं आयतनगुणपर्याप्ता बहुविशुद्धसम्यक्त्वे । निर्ग्रथे जिनमार्गे संक्षेपेण यथाख्यातम् ॥ ५९ ॥ अर्थ – ऐसें पूर्वोक्त प्रकार आयतन जो दीक्षाका ठिकानां निद्र्थ मुनि ताके गुण जे ते हैं तिनकरि पज्जत्ता कहिये परिपूर्ण, बहुरि अन्य भी जे बहुत-दीक्षा चाहिये ते गुण जामैं होय ऐसी प्रव्रज्या जिनमार्ग मैं. जैसैं ख्यात कहिये प्रसिद्ध है तैसें संक्षेपकरि कही, कैसा है जिनमार्गविशुद्ध है सम्यक्त्व जामैं अतीचार रहित सम्यक्त्व जामैं पाइये है बहुरि कैसा है जिनमार्ग — निग्रंथरूप है जामैं बाह्य अंतर परिग्रह नांही है ॥
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भावार्थ- ऐसी पूर्वोक्त प्रव्रज्या निर्मल सम्यक्त्वसहित निग्रंथरूप जिनमार्गविर्षै कही है, अन्य नैयायिक वैशेषिक सांख्य वेदान्त मीमांसक पातंजलि बौद्ध आदिक मतमैं नांही है, बहुरि कालदोषतें जैनमततैं च्युत भये अर जैनी कहावैं ऐसे श्वेतांबर आदिक तिनिमैं भी नांही है ॥ ५९ ॥ ऐसैं प्रव्रज्याका स्वरूपका वर्णन किया ।
आगैं बोधपाहुडकूं संकोचता संता आचार्य कहै है; -
गाथा - रुवत्थं सुद्धत्थं जिणमग्गे जिणवरेहिं जह भणियं । भव्वजण बोहणत्थं छक्का हियंकरं उत्तं ॥ ६० ॥
'आत्मत्व' इस
( १ ) संस्कृत सटीक प्रतिमें 'आयतन ' इसकी संस्कृत प्रकार है ।