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पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित
णसमान भूमि ४ कंटकरहित भूमि ५ मंद सुगंधपवन ६ सर्वके आनंद ७ गंधोदकवृष्टि ८ पाद तलै कमलर. ९ सर्वधान्यानष्पत्ति १० दशों दिशा निर्मल ११ देवनिको आह्वानन शब्द १२ धर्मचक्र आगें चलै १३ अष्ट मंगलद्रव्य आगें चालै १४ । अष्ट मंगल द्रव्यके नाम छत्र १ ध्वजा २ दर्पण ३ कलश ४ चामर ५ भंगार ६ ताल ७ सुप्रतीच्छक ८ ऐसें आठ। ऐसे चौतीसके नाम कहे । बहुरि अष्ट प्रातिहार्य होय हैं तिनिके नाम अशोकवृक्ष १ पुष्पवृष्टि २ दिव्यध्वनि ३ चामर ४ सिंहासन ५ भामंडल ६ दुंदुभिवादित्र ७ छत्र ८ ऐसे आठ । ऐसें तौ गुणस्थानकरि अरहंतका स्थापन कह्या ॥ ३१ ॥ - अब मार्गणाकरि कहै हैगाथा-गड़ इंदियं च काए जोए वेए कसाय णाणे य ।
संजम दंसण लेसा भविया सम्मत्त सण्णि आहारे ॥३३॥ संस्कृत—गतौ इंद्रिये च काये योगे वेदे कषाये ज्ञाने च । संयमे दर्शने लेश्यायां भव्यत्वे सम्यक्त्वे संज्ञिनि
आहारे ॥३३॥ अर्थ-ति, इंद्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञी, आहार ऐसें चौदह । तहां अरहंत सयोगकेवलीलौं तेरह गुणस्थान हैं तहां मार्गण लगाइये तब गति च्यारमैं मनुष्यगति है, इंद्रियजाति पांचमैं पंचेंद्रिय जाति है, काय छहमै त्रसकाय है- योग पंदरामैं योग मनोयोग सत्य अनुभय ऐसे दोय बहुरि तेही वचनयोग दोय बहुरि काययोग औदारिक ऐसैं पांच हैं अर समुद्धात करें ताकै औदारिकमिश्र कार्माण ये दोय मिलि सात है बहुरि वेद तीनूंहीका अभाव है, बहुरि कषाय पच्चीस सर्वही का अभाव है, बहुरि ज्ञान आठमैं केवलज्ञान है, संयम सातमैं एक यथाख्यात है, दर्शन च्यारमैं