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पंडित जयचंद्रची छावड़ा विरचित
राज्य दिया, तब वसुदेव कही—सिंहरथकू कंस बांधि ल्याया है याकू यो, तब जरासंध याका कुल जाणिबेळू मंदोदरीकू बुलाय कुलका निश्चयकरि याकू जीवंयशा पुत्री परणाई, तब कंस मथुराका राज लेय आय पिता उग्रसेन राजाकू अर पद्मावती माताकू बंदीखानैं दिया। पी3 कृष्ण नारायणकरि मृत्युकुं प्राप्त भया ताकी कथा विस्तारसूं उत्तरपुराणादिकतें जाननीं । ऐसें वशिष्ठमुनि निदानकरि सिद्धिा न पाई तातै भावलिंगहीतें सिद्धि है ॥ ४६॥ ___ आगें कहै है—भावरहित चौरासीलाख योनिमैं भ्रमैं है;गाथा-सो णत्थि तं पएसो चउरासीलक्खजोणिवासम्मि ।
___ भावविरओ वि सवणो जत्थ ण दुरुडुल्लिओ जीवो ॥ संस्कृत-सः नास्ति त्वं प्रदेशः चतुरशीतिलक्षयोनिवासे ।
भावविरतःअपि श्रमणः यत्र न भ्रमितः जीवः॥४७॥ ‘अर्थ-या संसारमैं चौरासीलाख योनि तिनिके वासमैं ऐसा प्रदेश नांही है जामैं यह जीव द्रव्यलिंग मुनि होय करि भी भावरहित भया संता न भ्रमण किया ॥ -- __ भावार्थ-द्रव्यलिंग धारि निग्रंथ मुनि होय करि शुद्धस्वरूपका अनुभवरूप भावविना यह जीव चौरासी लाख योनिमैं भ्रमताही रह्या, ऐसा ठिकानां नांही रह्या जामैं जनम्या मऱ्या न होय; ऐसैं जाननां ॥
आगें चौरासी लाख योनिका भेद कहै है;--पृथ्वी, अप, तेज, वायु, नित्यनिगोद, इतरनिगोद ये तो सात सात लाख हैं ते वयालीस लाख भये; बहुरि वनस्पति दश लाख हैं, वेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चौइंद्रिय, दोय दोय लाख हैं; पंचेंद्रिय तिर्यंच च्यार लाख, देव च्यार लाख, नारकी च्यार लाख, मनुष्य चौदह लाख । ऐसें चौरासी लाख हैं । ये जीवनिके उपजनेंके ठिकानें जाननें ॥४७॥