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अष्टपाहुडमें मोक्षपाहुडकी भाषावचनिका । ३३९
काकूं कीजिये, जे निषेध करें ते अज्ञानी मिध्यादृष्टी हैं तिनिकूं विषयकपायनिमैं स्वच्छन्द रहना है तातें ऐसे कहैं है ॥ ७७ ॥
आगे है है जो अबार काल मैं ध्यानका अभाव मांनि अर मुनि लिंग ग्रहण किया तिसकं गौणकरि पापमैं प्रवर्तें हैं ते मोक्षमार्गतैं च्युत हैं;
गाथा - जे पावमोहियमई लिंगं घेत्तूण जिणवरिंदाणं । पावं कुणति पावा ते चत्ता मोक्खमग्गमि ॥७८॥ संस्कृत - ये पापमोहितमतयः लिंगं गृहीत्वा जिनवरेन्द्राणाम् । पापं कुर्वन्ति पापाः ते त्यक्त्वा मोक्षमार्गे ॥७८॥
अर्थ-- जे पापकर्मकार मोहित है बुद्धि जिनिकी ऐसे हैं ते जिनवरेन्द्रं तीर्थंकरका लिंग ग्रहण करिभी पाप करें हैं ते पापी मोक्षमार्गतैं
हैं ॥
भावार्थ --जे पहलै निर्व्रथ लिंग धान्य पीछें ऐसी पाप बुद्धि उपजी-जो अबार ध्यानका तौ काल नांही तातैं काहेकुं प्रयास करें, ऐसैं विचार अर पापमैं प्रवर्त्तनें लगिजाय हैं, ते पापी हैं, तिनिकै मोक्षमार्ग नांही ॥ ७२ ॥
आगे कहै हैं जो जे मोक्षमार्ग च्युत हैं ते कैसे हैं;गाथा - जे पंचचेलसत्ता ग्रंथग्गाहीय जायणासीला ।
आधाकम्मम्मि रया ते चत्ता मोक्खमग्गमि ॥ ७९ ॥ संस्कृत - ये पंचचेलसक्ताः ग्रंथग्राहिणः याचनाशीलाः । अधः कर्मणि रताः ते त्यक्ताः मोक्षमार्गे ॥७९॥ अर्थ — पंच प्रकारके चेल कहिये वस्त्र तिनिविषै आसक्त हैं; अंडज, कर्पासज, वल्कल, चर्मज, रोमज ऐसें पंच प्रकार व मैं सूं कोई एक वस्त्र ग्रहण करें हैं, बहुरि ग्रंथग्राही कहिये परिग्रहके ग्रहण करनेवाले