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पंडित जयचंदजी छावड़ा विरचित
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गाथा--मय राय दोस मोहो कोहो लोहो य जस्त आयत्ता।
पंचमहव्ययधारा आयदणं महरिसी भणियं ॥६॥ संस्कृत-मदः रागः द्वेषः मोहः क्रोधः लोभः च यस्य आयत्ताः।
पंचमहाव्रतधराः आयतनं महर्षयो भणिताः ॥६॥ अर्थ-जा मुनिकै मद राग द्वेष मोह क्रोध लोभ अर चकारतें माया आदिक ये सर्व 'आयत्ता' कहिये निग्रहदूं प्राप्त भये बहुरि पांच महाव्रत जे अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचर्य अर परिग्रहका त्याग इनिका धारी होय ऐसा महामुनि ऋषीश्वर आयतन कह्या है ॥ ___ भावार्थ-पहली गाथामैं तो बाह्यका स्वरूप कह्या था इहां बाह्य आभ्यंतर दोऊ प्रकार संयमी होय सो आयतन है ऐसा जाननां ॥६॥
आण फेरि कहै है;गाथा-सिद्धं जस्स सदत्य बिसुद्धझाणस्स णागजुत्तस्स ।
सिद्धायदणं सिद्धं मुणिवरवसहस्स मुणिदत्यं ॥७॥ संस्कृत-सिद्धं यस्य सदर्थ विशुद्धध्यानस्य ज्ञानयुक्तस्य ।
सिद्धायतन सिद्धं मुनिवरवृषभस्य मुनितार्थम् ॥७॥ .अर्थ-जा मुनिकै सदर्थ कहिये समीचीन अर्थ जो शुद्ध आत्मा सो सिद्ध भया होय सिद्वायतन है, कैसा है मुनि-विशुद्ध है ध्यान जाकै धर्मध्यानकू साधि शुक्लध्यानकू प्राप्त भया है, बहुरि कैसा है-ज्ञानकरि सहित है केवलज्ञानकू प्राप्त भया है, बहुरि कैसा है-घातकर्मरूप मलसैं रहित है याहीत मुनिनिमैं वृषभ कहिये प्रधान है, बहुरि कैसा है-जाने है समस्त पयार्थ जानैं ऐसे मुनिप्रधानकू सिद्धायतन कहिये ॥ ___ भावार्थ--ऐसें तीन गाथा) आयतनका स्वरूप कया; तहां पहलीगाथामैं तौ संयमी सामान्यका बाह्यरूप प्रधानकार कह्या, दूजीमैं अंतरंग