________________
mmmmmmmmmmm
अष्टपाहुडमें बोधपाहुडकी भाषावचनिका । १३५ एक केवल दर्शन हैं लेश्या छहमैं एक शुक्लयोगनिमित है बहुरि भव्य दोयमैं एक भव्य है, सम्यक्त्व छहमैं क्षायिक सम्यक्त्व है संज्ञी दोयमैं संज्ञी है सो द्रव्यकरि हैं भावकरि क्षयोपशमरूपभाव मनका अभाव है आहारक अनाहारक दोयमैं आहारक है सो नोकर्मवर्गणा अपेक्षा है कवलाहार नांही है अर समुद्रात करै तो अनाहारक भी है ऐसैं दोऊ है। ऐसैं मार्गणा अपेक्षा अरहंतका स्थापन जाननां ॥ ३३ ॥
आगें पर्याप्तिकरि कहै है;गाथा--आहारो य सरीरो इंदियमणआणपाणभासा य ।
पज्जत्तिगुणसमिद्धो उत्तमदेवो हवइ अरहो ॥३४॥ संस्कृत-आहारः च शरीरं इन्द्रियमनआनप्राणभाषाः च ।
पर्याप्तिगुणसमृद्धः उत्तमदेवः भवति अर्हन् ॥३४॥ अर्थ-आहार बहुरि शरीर इंद्रिय मन आनप्राण कहिये श्वासोच्छास भाषा ऐसैं छह पर्याप्ति हैं, इस पर्याप्तिगुण करि समृद्ध कहिये युक्त उत्तमदेव अरहंत हैं ॥ ___ भावार्थ-पर्याप्तिका स्वरूप ऐसा जो-अन्य पर्यायतें च्यवनकरि अन्य पर्यायमैं प्राप्त होय तब तीन समय उत्कृष अंतरालमैं रहै पीछ सैनी पंचेंद्रिय उपजै सो जहां तीन जातिकी वर्गणाका ग्रहण करै; आहारवर्गणा भाषावर्गणा मनोवर्गणा; ऐसैं ग्रहण करि आहारजातिकी वर्गणातें तो आहार शरीर इंद्रिय श्वासोच्छास ऐसै च्यार पर्याप्ति अन्तर्मुहूर्त कालमैं पूरण करै पीछे भाषाजाति मनोजातिकी वर्गणारौं अन्तर्मुहूर्त्तहीमैं भाषा मन पर्याप्ति पूर्ण करै ऐसे छहूं पर्याप्ति अन्तर्मुहूर्तमैं पूर्ण कर है पीछै. आयुपर्यन्त पर्याप्त ही कहावै अर नोकर्मवर्गणा का ग्रहण करबोही करै,. इहां आहार नाम कवलाहारका न जाननां । ऐसें तेरहैं गुणस्थान भी अरहंतकै पर्याप्ति पूर्णही है ऐसैं पर्याप्तिकार अरहंतका स्थापना है ॥ ३४ ॥