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पंडित जयचंद्रजी छाबड़ा विरचित
बाह्यसाधन हिंसादिक पंच पापनिका त्यागरूप निर्बंथपद सर्व परिग्रहका त्यागरूप निर्ग्रन्थ दिगंबर मुद्रा धारै पांच महाव्रत पांच समितिरूप तीन गुप्तिरूप प्रवर्त्तेत सर्व जीवनिकी दया करनेवाले साधु कहावै, तामैं तीन पदवी होय जो आप साधु होय अन्यकं साधुपदकी शिक्षादीक्षा देय सो तौ आचार्य कहावै, अर साधु होय जिनसूत्रकूं पढ़ें पढावे सो उपाध्याय कहावै, अर जो अपने स्वरूपका साधन में रहे सो साधु कहा अर जो साधु होय अपने स्वरूपका साधनका ध्यानका बलतैं च्यारि घाति कर्मनिका नाशकरि केवलज्ञान केवलदर्शन अनंतसुख अनंतवीर्यकूं प्राप्त होय सो अरहंत कहावै, तब तीर्थंकर तथा सामान्यकेवली जिन इंद्रादिककरि पूज्य होय तिनिकी वाणी खिरै जिसतें सर्व जीवनिका उपकार होय अहिंसा धर्मका उपदेश होय सर्व जीवनिकी रक्षा करावे यथार्थ पदार्थनिका स्वरूप जनाय मोक्षमार्ग दिखावे ऐसी अरहंत पदवी होय हैं; बहुरि जो च्यारि अवाति कर्मकाभी नाशकरि सर्व कर्मनितैं रहित होय सो सिद्ध कहावै । ऐसें ये पांच पद हैं, ते अन्य सर्व जीवनितैं महान हैं तातैं पंच परमेष्ट्री कहा हैं तिनिके नाम तथा स्वरूप के दर्शन तथा स्मरण व्यान पूजन नमस्कार अन्य जीवनिके शुभपरिणाम होय हैं तातैं पापका नाश होय है, वर्त्तमानका विघ्न विलय होय है, आगामी पुण्यका बंध होय है तातैं स्वर्गादिक शुभगति पात्र है । अर इनकी अज्ञानुसार प्रवर्त्तनेते परंपराकरि संसार निवृत्तिभी होय हैं तातैं ये पंच परमेष्ठी सर्व जीवनिके उपकारी परमगुरु हैं, सर्व संसारी जीवनिकै पूज्य हैं। इनि सिवाय अन्य संसारी जीव हैं
राग द्वेष मोहादि विकारनिकरि मलिन हैं, ते पूज्य नांही, तिनिकै महानपणां गुरुपणां पूज्यपणां नांही, आपही कर्मानेके वाश मलिन तब अन्यका पाप तिनितैं कैसैं कटै । ऐसें जिनमत मैं इनि पंच परमेष्टीका महानपणां प्रसिद्ध है अर न्यायके चलतेंभी ऐसैंही सिद्ध होय हैं जातें जे