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पंडित जयचंदजी छावड़ा विरचित
दश तौ जामैं प्राण हैं ते द्रव्य प्राण जानना बहुरि पूर्ण पर्याप्ति है बहुरि एक हजार आठ लक्षण जाकै कहै हैं बहुरि गोक्षीर कहिये कपूर अथवा चंदन तथा शंख सारिखा जामैं सर्वांग धवल रुधिर मांस है ॥ ३८ ॥
ऐसे गुणनिकरि संयुक्त सर्वही देह अतिशयनिकरि सहित निर्मल हैं आमोद कहिये सुगंध जामैं ऐसा औदारिक देह अरहंत पुरुषका जाननां।३९।
भावार्थ-इहां द्रव्य निक्षेप नाही समझनां आत्मा” जुदा ही देहळू प्रधान करि द्रव्य अरहंतका वर्णन है ॥३७-३८-३९ ॥
ऐसे द्रव्य अरहंतका वर्णन किया।
आरौं भावकू प्रधानकरि वर्णन करे है;गाथा--मयरायदोसरहिओ कसायमलवजिओ य सुविसुद्धो ।
चित्तपरिणामरहिदो केवलभावे मुणेयन्वो ॥४०॥ संस्कृत-मदरागदोषरहितः कषायमलवर्जितः च सुविशुद्धः।
चित्तपरिणामरहितः केवलभावे ज्ञातव्यः ॥ ४० ॥ अर्थ—केवलभाव कहिये केवलज्ञानरूपही एक भाव हो” सं॰ अरहंत ऐसा जानना–मद कहिये मान कषायतै भया गर्व बहुरि राग द्वेष कहिये कंषायनिके तीव्र उदयतें होय ऐसी प्रीति अर अप्रीतिरूप परिणाम इनितें रहित है, बहुरि पच्चीस कषायरूप मल ताका द्रव्य कर्म तथा तिनिके उदयौं भया भावमल ताकरि वर्जित है याहीत अतिशयकरि विशुद्ध है निर्मल है, बहुरि चित्तपरिणाम कहिये मनका परिणमनरूप विकल्प ताकरि रहित है ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमरूप मनका विकल्प नाही है, ऐसा केवल एक ज्ञानरूप वीतरागस्वरूप भाव अरहंत जाननां ॥ ४०॥
आरौं भावहीका विशेष कहै है;