Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसूत्रे परेहिं निज्जइ, अगणिझामिए सरीरे कवोयवन्नाणि अट्रीणि भवंति, आसंदी पंचमा पुरिसा गामं पच्चागच्छंति, एवं असंते असंविज्जमाणे जेसि तं असंते असंविज्जमाणे तेसिं तं सुयक्खायं भवइ अन्नो भवइ जीवो अन्नं सरीरं, तम्हा, तं एवं नो विपडिवेदेति-अयमाउसो! आया दीहेइ वा हस्सेइ वा परिमंडलेइ वा वोइ वा तसेइ वा चउरंसेइ वा आयएइ वा छलंलिएइ वा अटुंसेइ वा किण्हेइ वा णीलेइ वा लोहिएइ वा हालिदेइ वा सुकिलेइ वा सुब्मिगंधेइ वा दुन्भिगंधेइ वा तितेइ वा कडुएइ वा कसाइए बा अंबिलेइ वा महुरेइ वा कक्खडेइ वा मउएइ वा गुरुएइ वा लहुएइ वा सिएइ वा उसिणेइ वा निदेइ वा लुक्खेइ वा एवं असंते असंविज्जमाणे जेसिं तं सुयक्खायं भवइ-अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, तम्हा ते णो एवं उपलब्भंति, से जहा णामए केइ पुरिसे कोसीओ आसि अभिनिवाट्टित्ताणं उवदंसेजा अयमाउसो ! असी अयं कोसी, एवमेव नस्थि केइपुरिसे अभिनिबाहित्ता णं उवदंसेत्तारो अयमाउसो! आयाइयं सरीरं । से जहा णामए केइपुरिसे मुंजाओ इसियं अभिनिव्वहित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो! मुंजे इयं इसियं एवमेव नस्थि केइपुरिसे उवदंसेतारो अयमाउसो! आया इयं सरीरं। से जहा णामए केइपुरिसे मंसाओ अटुिं अभिनिवट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो! मंसे अयं अट्ठी, एवमेव नस्थि केइपुरिसे उवदंसेत्तारो अयमा