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प्रथम उद्देशक ]
[२१ अर्थात्-कांटों को तीक्ष्ण कौन बनाता है ? मृग और पक्षियों में विचित्रता कहाँ से आती है ? सब पदार्थ स्वभाव से ही काम करते रहते हैं। अपनी इच्छानुसार कुछ नहीं हो सकता तो प्रयत्न करने से क्या लाभ ?
मृगियों के नेत्रों को किसने काले बनाये ? मयूरों के पंखों को किसने चित्रित किये ? कमलों में पराग कौन रख देता है ? और कुलीन पुरुषों में कौन विनय स्थापित करता है ? अर्थात् सब स्वभाव से ही होते हैं । यह संसार-व्यवस्था स्वभाव से ही है । यह स्वभाववादियों की मान्यता है।
इसी तरह ईश्वरवादियों के भी ३६ भेद समझने चाहिए । इनकी मान्यता है जीव, अजीव आदि सब पदार्थों का कर्ता ईश्वर है। उसकी ही प्रेरणा से संसार के सब व्यवहार होते हैं। ईश्वर की प्रेरणा से ही यह जीव स्वर्ग या नरक में जाता है, यह जीव अपने सुख-दुःख में स्वतंत्र नहीं है। कहा भी है:
अज्ञो जन्तुरनीशः स्यादात्मनः सुखदुःखयोः ।
ईश्वरप्रेरितो गच्छेच्छ्वभ्रं वा स्वर्गमेव वा ॥ - इसी प्रकार प्रात्माद्वैतवादियों के भी ३६ विकल्प समझने चाहिए। उनकी मान्यता है कि संसार में जो भी जड़ और चेतन दृष्टिगोचर होते हैं वे सब एक ही आत्मा की पर्याय हैं । जैसे एक ही चन्द्रमा जलतरंगों की विविधता के कारण अनेक रूप में दिखाई देता है उसी तरह एक ही मात्मा सब जड़ और चेतन में व्याप्त है। उनका कथन है:
एक एव हि भूतात्मा भूते भूते व्यवस्थितः।
एकमा बहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत् ॥ और भी कहा है:
पुरुष एवेदं सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यम् । अर्थात्-जो भूतकाल में हो चुका और जो भविष्य में होने वाला है और जो वर्तमान में है वह सब पुरुष-आत्मा ही है।
. इस तरह सब मिलाकर क्रियावादियों के १८० भेद हुए । ये सब वादी एकान्तवादी हैं प्रतएव इनका कथन अपूर्ण है । वस्तुतः अकेला काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर और श्रात्मा कार्य का कारण नहीं माना जा सकता है। यदि कालही को सब कार्यों का कारण मान लिया जाय तो जगत् की विचित्रता सम्भव नहीं हो सकती क्योंकि काल एक और व्यापक होने से सब की समानता होनी चाहिए । जगत् में विषमता और विचित्रता दृष्टिगत होती है अतः काल के अतिरिक्त अन्य कारण भी मानने चाहिए । केवल नियति को ही सब कार्यों का कारण मान लेने से सब पुरुषार्थ व्यर्थ सिद्ध हो जाते हैं। पुरुषार्थ के बिना नियति भी फलदायक नहीं देखी जाती। कहा भी है"अनुद्यमेन कस्तल तिलेभ्यः प्राप्तुमर्हति ।' अर्थात् तिलों में तेल होता है लेकिन मेहनत के बिना उसे कौन प्राप्त कर सकता है ? काल, स्वभाव आदि भी कारण हैं इसलिए केवल नियति को ही कारण मानना मिथ्या है।
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