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१. १.] मोक्ष और उसके साधन न हो कर योग और कषाय के अभाव से होती है। यतः योग तेरहवें गुणस्थान के अन्त तक विद्यमान रहता है, अतः तेरहवें गुणस्थान में चारित्र को अपूर्ण बतलाया है। __ शंका -यतः चौदहवें गुणस्थान के प्रथम समय में चारित्र पूर्ण हो जाता है, अतः उसी समय पर्ण मोक्ष क्यों नहीं प्राप्त होता?
समाधान यद्यपि यह सही है कि सम्यक्चारित्र की पूर्णता चौदहवें गुणस्थान के प्रथम समय में हो जाती है तब भी सब कर्मों की निर्जरा न होने से चौदहवें गुणस्थान के प्रथम समय में पूर्ण मोक्ष नहीं प्राप्त होता। ___ शंका-यदि ऐसा है तो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों मिल कर मोक्ष के साधन नहीं हो सकते ?
समाधान-इन तीनों के प्राप्त होने पर ही कर्मों की पूर्ण रूपसे निर्जरा होती है इसलिये ये तीनों मिलकर मोक्ष के साधन कहे हैं।
शंका-वास्तव में केवल सम्यक्चारित्र को ही मोक्ष का साधन कहना चाहिये था, क्योंकि अन्त में उसी के पूर्ण होने पर सब कर्मों की निर्जरा होकर मोक्ष प्राप्त होता है ? ___ समाधान-यह सही है कि अन्त में सम्यकचारित्र पूर्ण होता है किन्तु एक तो इन तीनों के निमित्त से कर्मों का संवर और निर्जरा होती है इसलिये इन तीनों को मोक्ष का साधन कहा है। दूसरे सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान का कारण है और ये दोनों मिलकर सम्यकचारित्र के कारण हैं, इसलिये भी ये तीनों मिलकर मोक्ष के साधन हैं।
शंका-बन्ध के साधनों में अज्ञान या मिथ्याज्ञान को नहीं गिनाया है इसलिये मोक्ष के साधनों में सम्यग्ज्ञान को गिनाना उचित नहीं है ? . समाधान यह हेय है या उपादेय यह विवेक सम्यग्ज्ञान से ही प्राप्त होता है, इसलिये मोक्ष के साधनों में सम्यग्ज्ञान को गिनाया है।