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तत्त्वार्थसूत्र
[२.१.-७. समाधान-उपचार से। शंका-उपचार का कारण क्या है ?
समाधान-इन क्षायिक दान आदि के सद्भाव में ये अभय-दान आदि कार्य होते हैं, इस लिये उपचार से अभयदानादि इनके कार्य कहे गये हैं ?
शंका-तो फिर ये अभयदानादि किसके कार्य हैं ?
समाधान-ये अभयदानादि कार्य शरीर नामकम और तीर्थकर आदि नाम कर्म के उदय में होते हैं इसलिये ये इनके निमित्त कारण कहे जाते हैं। वैसे तो शरीर के योग्य पुद्गल परमाणुओं का ग्रहण योग से होता है और कुसुमवृष्टि आदि कार्य भक्तिवश आए हुए देवादिकं करते हैं इसलिए ये ही इन कार्यों के निमित्त कारण हैं।
शंका-अघातिया कर्मों के क्षय से भी क्षायिक भाव प्रकट होते हैं, उन्हें क्षायिक भावों में क्यों नहीं गिनाया ?
समाधान-अघातिया कर्मों के क्षय से प्रकट होनेवाले भाव आत्मा के अनुजीवी अर्थात् असाधारण भाव नहीं होते किन्तु वे प्रतिजोवो होते है अर्थात् उनका सद्भाव अन्य द्रव्यों में भी पाया जाता है और यहाँ प्रकरण आत्मा के असाधारण भावों के बतलाने का है, इस लिये उन्हें यहाँ नहीं गिनाया ॥४॥ _ जिन अवान्तर कर्मों में देशघाति और सर्वघाति दोनों प्रकार के कर्म परमाणु पाये जाते हैं क्षयोपशम उन्हीं कर्मो का होता है। नौ
- नोकषायों में केवल देशघाति कर्म परमाणु पाए जाते क्षायोपशमिक भाव के भेद
का हैं इस लिए उनका क्षयोपशम नहीं होता। केवल
ज्ञानावरण आदि प्रकृतियों में केवल सर्वघाति परमाणु पाए जाते हैं इस लिए उनका भी क्षयोपशम नहीं होता। यद्यपि प्रत्याख्यानावरण और अप्रत्याख्यानावरण कषाय सर्वघाति ही हैं किन्तु इन्हें अपेक्षाकृत देशघाति मान लिया जाता है, इस लिए अनन्तानु