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१. १०. ११. १२.] प्रमाण चर्चा ज्ञानों का विस्तृत वर्णन इसी अध्याय में आगे किया ही है इसलिए यहाँ उनके स्वरूप का निर्देशमात्र करते हैं
१- इन्द्रिय और मन की सहायता से जो ज्ञान होता है वह मतिज्ञान है । २-मतिज्ञान से जाने हुए पदार्थ का अवलम्बन लेकर मतिज्ञानपूर्वक जो अन्य पदार्थ का ज्ञान होता है वह श्रतज्ञान है। ३द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की मर्यादा लिये हुए इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना जो रूपो पदार्थ का ज्ञान होता है वह अवधिज्ञान है। ४-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की मर्यादा लिये हुए जो इन्द्रिय
और मन की सहायता के बिना दूसरे के मन की अवस्थाओं का ज्ञान होता है वह मनःपर्ययज्ञान है । ५-तथा जो त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थों को युगपत् जानता है. वह केवलज्ञान है ।।९।।
प्रमाण चर्चातत् प्रमाणे ॥ १० ॥ आये परोक्षम् ॥ ११ ॥
प्रत्यक्षमन्यत् ॥ १२॥ वह पाँचों प्रकार का ज्ञान दो प्रमाणरूप है। प्रथम के दो ज्ञान परोक्ष प्रमाण है। शेष सब ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
अंश अंशी या धर्म-धर्मीका भेद किये बिना वस्तु का जो ज्ञान होता है वह प्रमाणज्ञान है। प्रमाणज्ञान का यह सामान्य लक्षण उक्त प्रमाण योर उसके पाँचों ज्ञानों में पाया जाता है इसलिए वे पाँचों ही
ज्ञान प्रमाण माने गये हैं। तथापि वह प्रमाण एक म प्रकार का नहीं है किन्तु परोक्ष और प्रत्यक्ष के भेद से दो प्रकार का है। इनमें से जो ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता