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४. १२ - १२. ] ज्योतिष्कों के भेद और उनका विशेष वर्णन
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चर ज्योतिष्क
विभाजित हो जाता है । एक गली से दूसरी गली में २ योजन का अन्तर माना गया है । इसमें सूर्य बिम्ब के प्रमाण को मिला देने पर वह २१६ योजन होता है । इतना दयान्तर है । मण्डलान्तर दो योजन काही है । चन्द्र को पूरी प्रदक्षिणा करने में दो दिन रात से कुछ अधिक समय लगता है । चन्द्रोदय में न्यूनाधिकता इसी से आती है । लवण समुद्र में चार सूर्य, चार चन्द्र; धातकीखण्ड में बारह सूर्य, बारह चन्द्र, कालोद में व्यालीस सूर्य, व्यालीस चन्द्र और पुष्करार्ध में बहत्तर सूर्य, बहत्तर चन्द्र हैं। इस प्रकार ढाई द्वीप में एक सौ बत्तीस सूर्य और एक सौ बत्तीस चन्द्र हैं । इन दोनों में चन्द्र इन्द्र और सूर्य प्रतीन्द्र है। एक एक चन्द्र का परिवार अट्ठाईस नक्षत्र, अठासी ग्रह और छयासठ हजार नौ सौ पचहत्तर कोड़ाकोड़ी तारे हैं । इन ज्योतिष्कों का गमनस्वभाव है तो भी अभियोग्य देव सूर्य आदि के विमानों को निरन्तर ढोया करते हैं । ये देव सिंह. गज, बैल और घोड़े का आकार धारण किये रहते है । सिंहाकार देवों का मुख पूर्व दिशा की ओर रहता है तथा गजाकार देवों का मुख दक्षिण दिशा की ओर, वृषभाकार देवों का मुख पश्चिम दिशा की ओर और अश्वाकार देवों का मुख उत्तर दिशा की ओर रहता है ॥ १३ ॥
यह दिन रात का भेद गतिवाले ज्योतिष्कों के निमित्त से होता स्पष्ट प्रतीत होता है। सूर्योदय से लेकर उसके अस्त होने तक के काल को दिन और सूर्यास्त से लेकर उदय होने तक काल विभाग का के काल को रात्रि कहते हैं । इसी प्रकार रात्रि में कारण कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष यह विभाग चन्द्र के ऊपर
अवलम्बित है । यतः यह ज्योतिष्क मण्डल ढाई द्वीप के अन्दर ही गमनशील है अतः इस प्रकार का स्पष्ट विभाग यहीं पर देखने को मिलता है ढाई द्वीप के बाहर नहीं । पर इसका यह मतलब नहीं कि वस्तुओं का परिवर्तन इस काल विभाग के ऊपर अवलम्बित है । वस्तु