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२.३६ - ४९. ] पाँच शरीरों का नाम निर्देश और उनका वर्णन १२३
के होता है । तथा प्रमत्तसंयत मुनि के आहार ऋद्धि के प्रयोग के समय तैजस, कार्मण, श्रदारिक और आहारक ये चार शरीर होते हैं ।
शंका--पाँच शरीर एक साथ एक जीव के क्यों नहीं होते ? समाधान - वैक्रियिक और आहारक शरीर एक साथ नहीं पाये जाते इसलिये एक जीव के एक साथ पाँच शरीर नहीं बतलाये ।
शंका- इस उत्तर से तो यह ज्ञात होता है कि वैकियिक शरीर का औदारिक शरीर के साथ होने में कोई विरोध नहीं, यदि ऐसा है तो फिर तैजस, कार्मण, श्रदारिक और वैक्रियिक यह विकल्प और बतलाना चाहिये था ?
समाधान - वैक्रियिक शरीर दो प्रकार का है एक तो वह जो देव और नारकियों के वैक्रियिक शरीर नामकर्म के उदय से होता है और दूसरा वह जो औदारिक शरीर में विक्रिया विशेष के प्राप्त होने से होता है । किन्तु यह दूसरे प्रकार का वैक्रियिक शरीर औदारिक शरीर से भिन्न नहीं होता । यही सबब है कि प्रकृत में तैजस, कार्मण, औदारिक और क्रियिक यह विकल्प नहीं बतलाया ||४३||
इन्द्रियों द्वारा शब्दादि रूप अपने-अपने विषयों को ग्रहण करना उपभोग कहलाता है । उठना, बैठना, खाना, पीना, दान देना यह सब इसी में सम्मिलित है । यह कार्य औदारिक, वैक्रियिक
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उपभोग विचार और आहार शरीर इनमें से किसी एक के रहते हुए बन सकता है । केवल कार्मण और तैजस शरीर के रहते हुए नहीं, क्योंकि यद्यपि विग्रहगति में दोनों शरीर रहते हैं और भावेन्द्रियां भी, फिर भी वहाँ इन्द्रियों से विषयों का ग्रहण नहीं होता इसलिये कार्मण शरीर को निरुपभोग कहा है । इससे यह अर्थ अपने श्राप निकल आता है कि शेष तीन शरीर सोपभोग हैं।
शंका- पूर्वोक्त कथन से यह ज्ञात होता है कि तैजस शरीर भी freपभोग है फिर उसका यहाँ ग्रहण क्यों नहीं किया ?