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४ आशिक
कावर
४. २०-२१.] वैमानिक देवों में अधिकता व हीनता का निर्देश १८५ मान कषाय के उदय से उत्पन्न हुआ अहङ्कार अभिमान कहलाता
____ है। स्थिति प्रभाव, शक्ति आदि के निमित्त से अभि
मिमान मान पैदा होता है। पर ऊपर ऊपर के देवों में कषायः घटती हुई होने के कारण अभिमान भी घटता हुआ ही है। इनके सिबा कुछ बातें और है जो देवों में विशेष रूप से पाई
. जाती हैं । खुलासा इस प्रकार हैउछवास आदि
। यों तो जिस प्रकार मनुष्य और तिथंच श्वासो
च्छवास लेते हैं वैसे देव भी लेते हैं। किन्तु उनके. श्वासोच्छवास के कालमान में अन्तर है।
उनके श्वासोच्छवास का साधारणतः यह नियम है कि जिनकी आयु जितने सागरोपम की होती है वे उतने पक्षबाद श्वासोच्छवास
लेते हैं। उदाहरणार्थ-जिनकी आयु एक सागरोपम की १ उच्छ वास है वे एक पक्ष में श्वासोच्छवास लेते हैं । जिनकी आयु दो सागरोपम की है वे दो पक्ष में श्वासोच्छ्रास लेते हैं। आगे आगे. इसी हिसाब से इसका कालमान बढ़ता जाता है। आहार तो देव भी करते हैं। पर उनका आहार मनुष्य और
तियचों सरीखा न होकर मानसीक माना गया है। २ आहार आहार विषयक विकल्प के होते ही उनके कण्ठ से अमृत मरता है जिससे उनकी तृप्ति हो जाती है।
देवलोक में या देवों द्वारा कुछ ऐसी बातें और होती हैं जो आश्चर्य जनक प्रतीत होती हैं। बहुतों का ख्याल है कि ये सब पुण्य के प्रभाव से होती हैं। जैसे, तीर्थकर के पंच कल्याणक के समय देवोंकी श्रासन का कम्पायमान होना, जन्मकल्याणक के समय बिना बजाये बाजों का बजना, जन्म से १५ महीने पहले कुवेर द्वारा रत्नों की वर्षा का किया जाना।