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६. १०-२७.] आठ प्रकार के कर्मों के आस्रवों के भेद २९५ सहना, ब्रह्मचर्य पालना, जमीन पर सोना, मल-मूत्र का रोकना आदि अकाम कहलाता है और इस कारण जो कर्मों की निर्जरा होती है वह अकाम निजरा है। बाल अर्थात् आत्म-ज्ञान से रहित मिथ्यादृष्टि पुरुषों का पश्चाग्नि तप, अग्नि प्रवेश, नख केश का बढ़ाना, ऊध्वंबाहु होकर खड़े रहना और अनशन आदि बालतप कहलाता है। ये सब देवायु के आस्रव हैं ॥ २०॥
पिछले सूत्र में सामान्य से चारों निकायवाले देवों की आयु के प्रास्रव बतलाये हैं। तथापि जो केवल वैमानिक देवों की आयु के वैमानिक देवों की आस्रव है वे उससे ज्ञात नहीं होते, जिनका ज्ञान
' होना आवश्यक है, अतः इसी बात का ज्ञान कराने
* के लिये प्रकृत सूत्र की अलग से रचना हुई है। आशय यह है कि सम्यग्दर्शन के होने पर एक वैमानिक देवों की आयु का ही आस्रव होता है। सरागसंयम और संयमासंयम ये सम्यर्शन के होने पर ही हो सकते हैं इसलिये ये भी वैमानिक देवों की आयु के
आस्रव है ऐसा समझना चाहिये। ____ शंका-सम्यग्दर्शन आत्मा का निर्मल परिणाम है इसलिये उसे कर्मबन्ध का कारण मानना युक्त प्रतीत नहीं होता ?'
समाधान-सम्यग्दर्शन स्वयं कर्मबन्धा का कारण नहीं है, किन्तु उसके सद्भाव में यदि आयु कम का बन्ध होता है तो वह वैमानिक देवों की आयु का ही होता है, यह इस सूत्र का भाव है। __ शंका-देव और नारकी सम्यग्दर्शन के सद्भाव में मनुष्यायु का ही बन्ध करते हैं इसलिये सम्यग्दर्शन के सद्भाव में केवल देवायु का आस्रव बतलाना युक्त नहीं प्रतीत होता ?
समाधान---इस सूत्र में जो प्राणी मरकर चारों गतियों में जन्म ले सकते हैं उनकी अपेक्षा से विचार किया गया है, ऐसे प्राणी मनुष्य और तियच ही हो सकते हैं। इनके सम्यक्त्व के सद्भाव में यदि आयु