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२.१७ -२१.] इन्द्रियों की संख्या, भेद-प्रभेद, नाम निर्देश, विषय ९७
समाधान नहीं। शंका-क्यों ?
समाधान-क्यों कि द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय को उत्पत्ति जाति ' नामकर्म के उदयानुसार होती है। यतः जो जीव जिस जाति में उत्पन्न होता है उसके उस जाति के अनुकूल इन्द्रियावरण का क्षयोपशम होता है और उसी जाति के आंगोपांग का उदय होता है, इसलिये प्रत्येक संसारी जीव के द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय एक समान पाई जाती हैं।
शंका-जो जन्म से अन्धे बहिरे होते हैं उनके चक्षु या श्रोत्र द्रव्येन्द्रिय तो पाई नहीं जाती, तो क्या उनके उस जाति की भावेन्द्रिय भी नहीं होती। _ समाधान-यह बात नहीं है कि जो जन्म से अन्धे या बहिरे होते हैं उनके चक्षु या श्रोत्र द्रव्येन्द्रिय नहीं होती। होती तो अवश्य है पर किसी निमित्त से बिगड़ जाती हैं। इतने मात्र से उनके उस जाति की भावेन्द्रिय का अभाव नहीं कहा जा सकता है।
शंका-वेदवैषम्य के समान इन्द्रिय वैषम्य क्यों नहीं पाया जाता?
समाधान-एक वेदवाले जीव के एक साथ अनेक द्रव्य वेदों की प्राप्ति सम्भव होने से वेदवैषम्य होता है, यह बात इन्द्रियों के विषय में लागू नहीं है अतः इन्द्रियवैषभ्य सम्भव नहीं।
शंका--एक वेदवाले जीव के एक साथ अनेक द्रव्य वेदों की प्राप्ति क्यों सम्भव है ? ___ समाधान-कर्मभूमि में शरीर के उपादान नियमित नहीं। यहाँ जिस गर्भ में पहले द्रव्यपुरुषका उपादान रहा वहाँ दूसरी बार द्रव्यस्त्री या द्रव्यनपुंसक का उपादान आ मिलता है। किसी गर्भ से एक बालक पैदा होता है और किसी गर्भ से दो या दो से अधिक बालक या बालकाएँ या बालक बालकाएँ मिल कर पैदा होते हैं इस लिये यहाँ