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४. २२.-२३] कल्पों की गणना नाद आदि शब्द होने लगेगा आदि । इसमें कर्म को निमित्त मानना उचित नहीं है।
वैमानिकों में लेश्या विचारपीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ॥ २२॥
दो, तीन युगलों में और शेषमें क्रम से पीत, पद्म और शुक्ललेश्या वाले देव हैं।
पहले चार स्वर्गो में पीत लेरया होती है। पाँचवें से दसवें तक के तीन कल्प युगलों में पद्म लेश्या और ग्यारहर्वे कल्प से सर्वार्थसिद्धितक के देवों में शुक्ल लेश्या होती है। यद्यपि तीसरे और चौथे कल्प में पद्म, नौवें और दसवें कल्प में शुक्ल तथा ग्यारवें और बारहवें कल्प में पद्म लेश्या भी होती है पर उसके कथन करने की सूत्र में विवक्षा नहीं की है ॥ २२ ॥
कल्पों की गणनाप्राग्वेयकेभ्यः कल्पाः ॥ २३ ॥ अवेयकों से पूर्व तक कल्प हैं।
जिनमें इन्द्र सामानिक और त्रायस्त्रिंश आदि रूप से देवों के विभाग की कल्पना है वे कल्प कहलाते हैं। यद्यप यह कल्पना अन्य निकायों में भी है पर रूढिस यह संज्ञा अन्यत्र प्रवृत्त नहीं है । ये कल्प मैवेयक से पहले तक ही हैं जो स्थानों की अपेक्षा सालह हैं और इन्द्रों की अपेक्षा बारह हैं। स्थान सोलह पहले गिना ही आये हैं। इन्द्र प्रथम चार और अन्त के चार कल्पों के चार चार हैं। तथा मध्य के आठ कल्पों में दो दो कल्पों का एक एक है। इस प्रकार इन्द्रों की
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® इस विषयकी विशेष जानकारी के लिये इसीका आठवां अध्याय देखिये ।