Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 477
________________ ४२२ तत्वार्थ सूत्र [ ६.८-१७. राशि का मिलना कठिन है। इस प्रकार उत्तरोत्तर संज्ञी होना, पर्याप्त होना, मनुष्य होना, सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति के योग्य साधनों का मिलना ये सब कठिन हैं । यदा कदाचित् इनकी प्राप्ति भी हो जाय तो भी रत्न की प्राप्ति होना सहज बात नहीं है । इस प्रकार का चिन्तवन करना बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा है । ऐसी भावना करने से बोधि को प्राप्त करके यह जीव प्रमादी नहीं होता । जिन देव ने जिस धर्म का उपदेश दिया है उसका लक्षण हिंसा है जिसकी पुष्टि सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, विनय, क्षमा, विवेक आदि धर्मों व गुणों से होती है । जो प्राणी धर्मस्वाख्यातइसे धारण नहीं करता उसे संसार में भटकना पड़ता त्वानुप्रेक्षा है, इस प्रकार से चिन्तन करना धर्मस्वाख्यातत्वानुप्रेक्षा है । ऐसा चिन्तवन करने से जीव का धर्म में अनुराग चढ़ता है। रक्षाएँ हैं जिनका चिन्तवन कर साधु अपने वैराग्यमय जीवन को सुदृढ़ बनाते हैं इसलिए इन्हें संवर का कारण कहा है ॥ ७ ॥ परीषदों का वर्णन - मार्गाच्यवन निर्जरार्थं परिसोढव्याः परीषाहाः ॥ ८ ॥ क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याक्रोशयाचनालाभरो गतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञाना दर्शनानि ॥ ९ ॥ सूक्ष्मसम्पराय छद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश ॥ १० ॥ एकादश जिने ॥ ११ ॥ बादरसम्म सर्वे ॥ १२ ॥

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