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तत्वार्थ सूत्र
[ १. १३.
ठहरने पर उसमें स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान ज्ञान के अन्तर्भाव न हो सकने से मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध इन्हें मतिज्ञान के पर्यायवाची ही मानने चाहिये, मतिज्ञान के भेद नहीं | ये मतिज्ञान के पर्यायवाची नाम ही हैं इसको पुष्टि षट्खण्डागम के प्रकृति अनुयोगद्वार से भी होती है । वहाँ आभिनिबोधिज्ञान का निरूपण करने के बाद एक सूत्र आया है जिसका भाव है कि अब affaधक ज्ञान की अन्य प्ररूपणा करते हैं ।' और इसके बाद वहाँ क्रमशः अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा और आभिनिवोधिक ज्ञान के पर्यायवाची नाम दिये हैं । प्रकृति अनुयोगद्वार का यह उल्लेख ऐसा है जिससे भी मति आदिक मतिज्ञान के पर्यायवाची नाम ठहरते हैं।
तत्त्वार्थसूत्र की टीकाओं के निम्न उल्लेखों से भी इसकी पुष्टि होती है
(१) सर्वार्थ सिद्धि में लिखा है कि यद्यपि इन शब्दों में प्रकृति भेद है तो भी ये रूढि से एक ही अर्थ को जनाते हैं ।
( २ ) राजवार्तिक में भी इसी प्रकार का अभिप्राय दरसाया है । मतिज्ञान वर्तमान अर्थ को विषय करता है और श्रुतज्ञान त्रिकावर्ती अर्थ को विषय करता है । इससे भी ज्ञात होता है कि 'मतिः स्मृति' इस सूत्र में जो स्मृति आदि शब्द आये हैं उनका अर्थ स्मरण ज्ञान, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान नहीं है । लाया है कि 'इन्द्र, शक्र और पुरन्दर इन शब्दों में पर भी जैसे एक ही देवराज इन नामों द्वारा पुकारा जाता है वैसे ही मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध इन शब्दों में यद्यपि प्रकृति भेद है तो भी वे एक ही मतिज्ञान के पर्यायवाची नाम है ।' सो इस कथन से भी उक्त अर्थ की ही पुष्टि होती है ।
सर्वार्थसिद्धि में बतप्रकृति भेद के होने
आचार्य कलंक देव ने लघीयस्त्रय में एक चर्चा उठाई है । प्रश्न