________________
२.३६.-४९.] पाँच शरीरों का नाम निर्देश और उनका वर्णन ११९ है। इसके दो भेद हैं नहीं निकलनेवाला और निकलनेवाला। नहीं निकलनेवाला तेजस शरीर औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर के भीतर स्थित रहता है जिससे शरीर कान्तिमान रहता है। तथा निकलनेवाला तैजस शरीर उग्र चारित्रवाले मुनि के क्रोध होने पर होता है। यह शरीर से बाहर निकल कर बारह योजन तक के पदार्थों को भस्म कर देता है या इतने क्षेत्र के भीतर के प्राणियों का अनुग्रह करनेवाला होता है। सब कर्मों का समूह ही कार्मण शरीर है। सब कर्मों के समूह को कार्मण शरीर संज्ञा कामण शरीर नामकर्म के उदय से प्राप्त होती है।॥ ३६॥ ___उक्त पाँचों शरीरों में औदारिक शरीर सब से अधिक स्थूल है । यद्यपि सूक्ष्म एकेन्द्रियों का शरीर सूक्ष्म कहलाता है पर इसमें सूक्ष्म
नामकर्म के उदय से सूक्ष्मता आती है वैसे तो यह शरीरों में उत्तरो
भी वैक्रियिक शरीर से स्थूल ही है। वैक्रियिक शरीर त्तर सूक्ष्मता
"" इससे सूक्ष्म है, आहारक शरीर वैक्रियिक शरीर से सूक्ष्म है। इसी प्रकार तैजस आहारक से और कार्मण तैजस से सूक्ष्म हैं। शरीरों में यह जो उत्तरोत्तर सूक्ष्मता बतलाई है वह इन्द्रिय अग्रा. यत्व या अप्रतीघातपने की अपेक्षा से जानना चाहिये । परिमाण की अपेक्षा नहीं, क्यों कि परिमाण की अपेक्षा पाँचों शरीर उत्तरोत्तर अधिक हैं॥ ३७॥ ___यद्यपि ये पाँचों शरीर उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं तथापि जिस द्रव्य से ये
.... बनते हैं वह उत्तरोत्तर अधिक होता है। पर यह उक्त पाँच शरीरों के द्रव्य का परिमाण
कितना अधिक होता है इसी बात को दो सूत्रों में
बतलाया है। जिन परमाणुओं के पुञ्ज से ये औदारिक श्रादि पांच शरीर बनते हैं वे यद्यपि अनन्त हैं तथापि औदारिक शरीर के परमाणुओं से वैक्रियिक शरीर के परमाणु और वैक्रियिक शरीर के परमा