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तत्त्वार्थसूत्र
[ २.१७. -२१.
तथा चक्षुदर्शनावरण और अचक्षु दर्शनावरण का क्षयोपशम होकर जो आत्मा में ज्ञान और दर्शन रूप शक्ति उत्पन्न होती है वह लब्धि इन्द्रिय है । यह आत्मा के सब प्रदेशों में पाई जाती है, क्यों कि क्षयोपशम सर्वांग होता है । तथा लब्धि, निवृत्ति और उपकरण इन तीनों के होने पर जो विषयों में प्रवृत्ति होती है वह उपयोगेन्द्रिय है ।
शंका-उपयोग इन्द्रिय न होकर इन्द्रिय का फल है फिर उसे इन्द्रिय कैसे कहा ?
समाधान - यद्यपि उपयोग इन्द्रिय का कार्य है पर यहां उपचार अर्थात् कार्य में कारण का आरोप करके उपयोग को भी इन्द्रिय कहा है । अथवा इन्द्रिय का मुख्य अर्थ उपयोग है, इसलिये उपयोग को इन्द्रिय कहा है ।
शंका- द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय किस क्रम से उत्पन्न होती हैं ? समाधान - जिस जीव के जिस जाति नामकर्म का उदय होता है। उसके उसी के अनुसार इन्द्रियावरण का क्षयोपशम और आंगोपांग नामकर्म का उदय होकर उतनी द्रव्येन्द्रियां और भावेन्द्रियां उत्पन्न होती हैं । उसमें भी लब्धिरूप भावेन्द्रिय भव के प्रथम समय से उत्पन्न हो जाती है. और द्रव्येन्द्रिय की रचना शरीर ग्रहण के प्रथम समय से प्रारम्भ होती है | तथा जब द्रव्येन्द्रिय पूर्ण हो जाती है तब उपयोग भावेन्द्रिय होती ह । इस प्रकार यह द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय की उत्पत्ति का क्रम है ॥ १८ ॥
पांचों इन्द्रियों के नाम क्रमशः स्पर्शनेन्द्रिय- त्वचा, रसनेन्द्रियजिह्वा, घाणेन्द्रिय - नासिका, चक्षुरिन्द्रिय-- नेत्र और श्रोत्रेन्द्रिय - कान हैं। इन पांचों इन्द्रियों के निवृत्ति, उपकरण, लब्धि और उपयोग रूप चार चार भेद हैं। इनमें से प्रारम्भ के दो द्रव्येन्द्रिय रूप हैं और अन्त के दो भावेन्द्रिय रूप |
शंका-क्या यह सम्भव है कि किसी जीव के उस जाति की द्रव्ये - न्द्रिय तो उत्पन्न हो पर उसी जाति की भावेन्द्रिय उत्पन्न न हो ?