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तत्त्वार्थसूत्र
[५. २१-२२. ___ जीव द्रव्य के कार्यों पर प्रकाशपरस्परोपग्रहो जीवानाम् ।। २१ ॥ परस्पर सहायक होना यह जीवों का उपकार है।
जगत् में जीवों के परस्पर अनेक प्रकार के सम्बन्ध देखे जाते हैं और उन सम्बन्धों के अनुसार वे एक दूसरे का उपकार भी करते हैं। जैसे आचार्य उभय लोक का हितकारी उपदेश देकर और उसके अनुकूल अनुष्ठान कराकर शिष्य का उपकार करता है तथा शिष्य भी अनुकूल प्रवृत्ति द्वारा आचार्य का उपकार करता है। पति सुख सुविधा की व्यवस्था कर और अपने जीवन की सच्ची संगिनी बनाकर पत्नी का उपकार करता है और पत्नी अनुकूल प्रवर्तन द्वारा पति का उपकार करती है। इस प्रकार परस्पर सहायता पहुंचाना यह जीवों का उपकार है ॥२१॥
काल द्रव्य के कार्यों पर प्रकाशवतनापरिणामक्रियाः परत्वापरत्वे च कालस्य ॥ २२ ॥
वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये काल के उप'कार हैं।
सूत्रकार ने अन्य द्रव्यों के उल्लेख के समान अब तक काल द्रव्य का उल्लेख नहीं किया है तथापि काल भी एक द्रव्य है यह बात वे आगे स्वीकार करनेवाले हैं इसलिये उपकार प्रकरण में काल के उपकार
'बतलाये हैं?
जगत् के जितने पदार्थ हैं वे स्वयं वर्तनशील हैं। परिवर्तित होते रहना उनका स्वभाव है। ऐसा एक भी पदार्थ नहीं है जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यात्मक न हो। इस प्रकार यद्यपि प्रत्येक वस्तु की वर्तनशीलता उसके स्वभावगत है पर यह कार्य बिना निमित्त के नहीं हो सकता, इसलिये इसके निमित्तरूप से काल द्रव्य को स्वीकार किया गया है। यही कारण है कि वर्तना काल द्रव्य का लक्षण माना गया है।