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आस्रव में विशेषता का निर्देश
२७९ ___ अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग कारणों की प्रबलता से जो उत्कट परिणाम होता है वह तीव्रभाव है । मन्दभाव इससे विपरीत है। दर्शन क्रिया के समान होने पर भी परिणामों की तीव्रता और मन्दता के कारण उसमें अन्तर आ जाता है जिससे न्यूनाधिक कर्मबन्ध होता है। उदाहरणार्थ-ऐसे दो व्यक्ति हैं जिनमें से एक की बोलपट देखने की अभिरुचि तत्र है और दूसरे की मन्द तो इन दो व्यक्तियों में से मन्द आसक्ति पूर्वक देखनेवाले की अपेक्षा तीव्र आसक्ति से देखनेवाला व्यक्ति आस्रव भेद के कारण अधिक कर्मबन्ध करेगा और मन्द आस. क्तिवाला न्यून कर्मबन्ध करेगा।
यह मारने योग्य है ऐसा जानकर प्रवृत्ति करना ज्ञातभाव है और अहंकार या प्रमादवश बिना जाने प्रवृत्ति करना अज्ञातभाव है। बाह्य क्रिया के समान होने पर भी इन भावों के कारण आस्रव में अन्तर
आ जाता है जिससे न्यूनाधिक कर्मबन्ध होता है। उदाहरणार्थ-ऐसे दो व्यक्ति हैं जिनमें से एक हिंसा करना चाहता है और दूसरे का भाव शरसन्धान साधने का है। इनमें से पहले ने जानकर हिंसा की और दूसरे के द्वारा शरसन्धान साधते हुए बिना जाने हिंसा हो गई तो इन दो में से प्रथम आस्रव के कारणों में भेद हो जाने से अधिक बन्ध करेगा और दूसरा न्यून ।
अधिकरण का मतलब आधार से है। इसके जीव और अजीव रूप अनेक भेद आगे कहे जानेवाले हैं। इस कारण से भी आस्रव में भेद हो कर कर्मबन्ध में विशेषता आती है। जैसे-- दो प्राणी हैं जो छू कर जान रहे हैं। उनमें से एक एकेन्द्रिय है और दूसरा पञ्चेन्द्रिय । यद्यपि इन दोनों की क्रिया एक है तथापि आधार भेद से आनव में भेद होकर इनके न्यूनाधिक कर्मबन्ध होता है। एकेन्द्रिय जीव न्यून कर्मबन्ध करता है और पञ्चेन्द्रिय इससे अधिक कर्मबन्ध करता है। यह जीवाधिकरण,का उदाहरण है। इसी प्रकार अजीवाधिकरण का