________________
कायस्थिति
१६६
तत्त्वार्थसूत्र [३. ३८-३९. जाता है। कहीं कहीं बहुत इस अर्थ में भी पृथक्त्व शब्द आना है।
तिर्यचों के अनेक भेद हैं इसलिये उनकी भवस्थिति और कायस्थिति अलग अलग प्राप्त होती है जो निम्न प्रकार है
तिथंचों में पृथिवीकायिकों की उत्कृष्ट भवन्थिति बाईस हजार वर्ष, जल कायिकों की सात हजार वर्ष, अग्निकायिकों की तीन दिनरात, वायुकायिकों
- की तीन हजार वर्ष, वनस्पति कायिकों की दस हजार
" वर्ष द्वीन्द्रियों की बारह वर्ष, त्रीन्द्रियों की उनचास स्थिति और
दिनरात, चतुरिन्द्रियों की छह महीना, पंचेन्द्रियों
में मछली आदि जलचरों की पूर्वकोटि प्रमाण, गोधा व नकुल आदि परिसॉं की नौ पूर्वांग, सर्पो' की व्यालीस हजार वर्ष, पक्षियों की बहत्तर हजार वर्ष और चतुष्पदों आदि की तीन पल्योपम उत्कृष्ट भवस्थिति है। तथा इन सबकी जघन्य भवस्थिति अन्तमुहूर्त है । यह भवस्थिति है। ___ कायस्थिति निन्न प्रकार है-पृथिवीकाय, जलकाय, अग्निकाय और वायुकायिक जीवों की असंख्यात लोकों के समय प्रमाण, बनस्पतिकायिक जीवों की अनन्त कालप्रमाण, विकलेन्द्रियों की संख्यात इजार वर्ष प्रमाण तथा पंचेन्द्रियों की पूर्वकोटि पृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम उत्कृष्ट कायस्थिति है। तथा इन सबकी जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है ।। ३८-३९ ॥