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तत्त्वार्थसूत्र और भावमन का जीव द्रव्य में अन्तर्भाव होता है। तथा दिशा आकाश से पृथक् नहीं है, क्योंकि सूर्य के उदयादिक को अपेक्षा से आकाश में पूर्व-पश्चिम आदि दिशाओं का विभाग किया जाता है। इसलिये वैशपिक दर्शन में स्वीकार किये गये सव द्रव्यों को जैन दर्शन में पृथक् रूप से स्वीकार नहीं किया है। ___शंका-जिसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श ये चारों पाये जाते हैं वह पृथिवी है । जिसमें रूप, रस और स्पर्श ये तीन पाये जाते हैं वह जल है। जिसमें रूप और स्पर्श पाया जाता है वह अग्नि है और जिसमें केवल रूप पाया जाता है वह वायु है। इस प्रकार ये स्वतन्त्र रूप से चार द्रव्य सिद्ध होते हैं । इन चारों को एक पुद्गल द्रव्य स्वरूप मानना उचित नहीं है ?
समाधान--ये पृथिवी आदि जिन परमाणुओं से बने हैं उनकी जाति एक है यह वर्तमान विज्ञान से भी सिद्ध है, इसलिये इन चारों को स्वतन्त्र-स्वतन्त्र द्रव्य मानना उचित नहीं है। उदाहरणार्थ--वायु को व अन्य वातिओं (gases ) को द्रव्य रूप में परिणत किया जा सकता है। तरल अवस्था में वायु का रंग हलका नीला होता है। अधिकांश वातियों के तरल रूप में वर्ण के साथ उनमें रस और गन्ध भी पाया जाता है। इसी प्रकार ताप के विषय में वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है कि जब किसी वस्तु में व्यूहाणु-उद्वेलन ( molecularagitation ) अधिक हो जाता है तब उसका ताप बढ़ जाता है और हमें गर्मी का अनुभव होने लगता है। यह एक प्रकार की ऊर्जा है और वैज्ञानिक लोग ऊर्जा तथा प्रकृति (पुद्गल ) को एक मानते हैं । इससे सिद्ध है कि वायु और अग्नि स्वतन्त्र-स्वतन्त्र द्रव्य न होकर पुद्गल की ही अवस्था विशेष हैं। इसी प्रकार जल भी स्वतन्त्र द्रव्य नहीं है ऐसा समझना चाहिये । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रकृति ( matter ) को ठोस, तरल और वातिरूप माना जाता है।