________________
तत्त्वार्थसूत्र
[१. १५
स्पर्शन ।
अवग्रह
ईहा अवाय
-
घ्राण
--
श्रोत्र
मन
शंका-इन्द्रियों के द्वारा होनेवाला ज्ञान तो निर्विकल्प है। वे स्पर्श आदि विषयों को जानती तो हैं पर उनमें यह 'ठंडा है गरम नहीं, इसे ठंडा ही होना चाहिये, यह ठंडा ही है' इत्यादि विकल्प नहीं पैदा होते । ये सब विकल्प तो मानसिक परिणाम हैं। किन्तु इन विकल्पोंके बिना मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये भेद बन नहीं सकते, अतः प्रत्येक इन्द्रिय का कार्य अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप मानना उचित नहीं ?
समाधान--यह सही है कि उक्त विकल्प मानसिक परिणाम हैं। इन्द्रियाँ तो अभिमुख विषय को ग्रहण करती मात्र हैं उनमें विधिनिषेधरूप जितने भी विकल्प होते हैं वे सब मन से ही होते हैं । तथापि उनमें इन्द्रियों की सहायता अपेक्षित रहती है इसलिये तद्द्वारा होनेवाले ईहा, अवाय और धारणा रूप कार्य इन्द्रियों के माने गये हैं। __शंका-तब फिर एकेन्द्रियादि जिन जीवों के मन नहीं पाया जाता है उनके प्रत्येक इन्द्रिय द्वारा अवग्रह आदि चार प्रकार का ज्ञान कैसे हो सकता है ?