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१०४ तत्वार्थसूत्र
[२.२२.२४. प्राण ! भ्रमर आदि जाति के जीवों के चार इन्द्रियाँ होती हैं- पूर्वोक्त तीन और चक्षु । मनुष्य आदि के पाँच इन्द्रियाँ होती हैं-पूर्वोक्त चार
और श्रोत्र । यहाँ मनुष्यों के सिवा पशु, पक्षी, देव और नारकी लेना चाहिये, क्यों कि इन सबके पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं।
शंका-पहले इन्द्रियोंके द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय इस प्रकार दो भेद कर आये हैं सो यहाँ यह संख्या किसकी अपेक्षा से बतलाई है ? ___समाधान-यह संख्या इन्द्रिय सामान्य की अपेक्षा से बतलाई है। उसमें भी भावेन्द्रिय मुख्य है, क्योंकि एक तो विग्रहगति में भावेन्द्रियाँ ही पाई जाती हैं और दूसरे द्रव्येन्द्रियाँ भावेन्द्रियों के अनुसार होती हैं।
शंका-द्रव्येन्द्रियाँ भावेन्द्रियों के अनुसार क्यों होती हैं ?
समाधन-भावेन्द्रियाँ जाति नामकर्म के अनुसार होती हैं और जो जीव जिस जाति में जन्म लेता है उसके उसी जाति के शरीर और आंगोपांग प्राप्त होते हैं, इससे निश्चित होता है कि द्रव्येन्द्रियाँ भावेन्द्रियों के अनुसार होती है। ___ शंका-तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में मनुष्यों के भावन्द्रियाँ तो नहीं रहती तब भी वे वहाँ पंचेन्द्रिय कहे जाते हैं, इससे ज्ञात होता है कि एकेन्द्रिय और द्वीन्द्रिय आदि व्यवहार द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा से होता है ? ____समाधान-वास्तव में एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय आदि व्यवहार एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रियजाति आदि नामकर्म के उदय से होता है। तेरहवें और चौदहवें गुण स्थान में मनुष्यों में जो पश्चेन्द्रिय व्यवहार होता है वह भी पञ्चेन्द्रिय जाति नामकर्म के उदय की अपेक्षा से होता है। इस लिये एकेन्द्रिय आदि व्यवहार द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा से होता है यह बात नहीं है । तथापि जाति नामकर्म के उदयका अन्वय मुख्यतया भावेन्द्रियों के साथ पाया जाता है. इस लिये पहले एकन्द्रिय आदि व्यवहार को भावेन्द्रियों की अपेक्षा से लिखा है ।। २३ ।।