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१. ९.] सम्यग्ज्ञान के भेद
१७ ४ स्पर्शन -- सम्यग्दृष्टियों ने लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का, त्रस नाली के चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्र का और सयोगकेवली की अपेक्षा सर्वलोक क्षेत्र का स्पर्शन किया है।
५ काल-एक जीव की अपेक्षा सम्यग्दर्शन का काल सादि-सान्त और सादि अनन्त दोनों प्रकार का प्राप्त होता है पर नाना जीवों की अपेक्षा वह अनादि-अनन्त है, क्योंकि सम्यग्दृष्टि जीव सदा पाये जाते हैं।
६ अन्तर ---नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तमु हूते और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अध. पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। ____७ भाव --सम्यग्दृष्टिं यह औपशमिक, क्षायोपशमिक या क्षायिक भाव है।
८ अल्पबहुत्व - औपशमिक सम्यग्दृष्टि सबसे थोड़े हैं। उनसे संसारी क्षायिक सम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणे है। उन से क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणे है । उन से मुक्त क्षायिक सम्यग्दृष्टि अनन्तगुणे हैं ।। ७-८ ।।
सम्यग्ज्ञान के भेदमतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् ।। ९।। मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ये पाँच ज्ञान हैं।
प्रस्तुत सूत्र में सम्यग्ज्ञान के पाँच भेद किये हैं। यद्यपि सूत्र में सिर्फ ज्ञान पद हैं सम्यग्ज्ञान पद नहीं, तथापि सम्यक्त्व का अधिकार होने से यहाँ ज्ञान से सम्यग्ज्ञान ही लिया गया है। इस से यह बात
और फलित होती है कि सम्यक्त्व सहचरित जितना भी ज्ञान होता है वह सबका सब सम्यग्ज्ञान रूप हो होता है। सम्यग्ज्ञान का लक्षण ही यह है कि सम्यक्त्व सहित जो ज्ञान वह सम्यग्ज्ञान ।