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३, २७.-३४.]
शेष कथन होती है। रंग नीलवर्ण होता है और वे एक दिन के अन्तराल से भोजन करते हैं। हरिवर्ष क्षेत्र के प्राणियों की स्थिति दो पल्यप्रमाण होती है। यहाँ निरन्तर उत्सर्पिणी का पाँचवाँ या अवसर्पिणी का दूसरा काल प्रवर्तता है। मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई चार हजार धनुष होता है। रंग शुक्ल होता है और वे दो दिन के अन्तराल से भोजन करते हैं। तथा देवकुरु क्षेत्र के प्राणियों की स्थिति तीन पल्यप्रमाण होती है। यहाँ निरन्तर उत्सर्पिणी का छठा और अवसर्पिणी का पहला काल प्रवर्तता है। मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई छह हजार धनुष होती है, रंग पीत होता है और वे तीन दिन के अन्तराल से भोजन करते हैं।
हैमवत, हरिवर्ष और देवकुरु में कालका जो क्रम बतलाया है वही क्रम उत्तर दिशा के उत्तरकुरु, रम्यक और हैरण्यवत इन तीन क्षेत्रों में समझना चाहिये। उत्तरकुरु में देवगुरु के समान, रम्यक में हरिवर्ष के समान और हैरण्यवत में हैमवत के समान काल है। किन्तु विदेहों की स्थिति इन सब क्षेत्रों से भिन्न है । वहाँ उत्सर्पिणी का तीसरा या अवसर्पिणो का चौथा काल सदा अवस्थित है। इसमें मनुष्यों की ऊँचाई पाँच सौ धनुष प्रमाण होती है और उत्कृष्ट आयु एक पूर्वकोटि प्रमाण होती है। प्रायः इसी काल से जीव मुक्ति लाभ करते हैं। विदेहों में यह काल सदा रहता है इसलिये यहाँ से जीव सदा मोक्ष जाते हैं और जब भरत और ऐरावत क्षेत्र में भी यह काल आता है तब वहाँ से भी जोव मोक्ष जाने लगते हैं।
इन सब क्षेत्रों में भरत क्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप के कुल विष्कम्भ का एक सौ नब्बेवाँ भाग प्राप्त होता है जिसका निर्देश सूत्र २५ में कर ही आये हैं ।। २७-३२॥ धातकीखण्ड द्वीप में जम्बूद्वीप की अपेक्षा मेरु, वर्ष, वर्षधर, ११