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आठवाँ अध्याय आस्रव तत्त्व का वर्णन करने के बाद अब बन्ध तत्त्व का वर्णन किया जाता है
बन्ध के हेतुओं का निर्देशमिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ॥ १॥ ___ मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कपाय और योग ये पाँच बन्ध के हेतु हैं।
वेदनाखण्ड में बन्धहेतुओं का विचार करते हुए यद्यपि नैगम, संग्रह और व्यवहार नय से बन्ध के हेतु अनेक बतलाये हैं तथापि वहां ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा प्रकृति और प्रदेशबन्ध का हेतु योग तथा स्थिति और अनुभागबन्ध का हेतु कषाय को बतलाया है। प्रस्तुत सूत्र में कषाय और योग को तो बन्ध के हेतु बतलाये ही हैं पर इनके अतिरिक्त मिथ्यादर्शन, अविरति और प्रमाद ये तीन बन्धहेतु और बतलाये गये हैं। इनमें से अविरति और प्रमाद का अन्तर्भाव तो कषाय में ही हो जाता है, क्योंकि कषाय की विविध अवस्थाएँ ही अविरति और प्रमाद है। परन्तु मिथ्यादर्शन का कषाय और योग इनमें से किसी में भी अन्तर्भाव नहीं होता। इस प्रकार समसित रूप से विचार करने पर यहाँ बन्ध के हेतु तीन प्राप्त होते हैं मिथ्यादर्श, कषाय और योग । ____एक परम्परा मिथ्यादर्शन, अविरति, कषाय और योग इन चार को बन्धहेतु गिनाने की मिलती है । इस परम्परा के अनुसार भी अविरति का अन्तर्भाव कषाय में हो जाने पर मिथ्यादर्शन, कषाय और योग ये तीन ही बन्ध के हेतु रह जाते हैं। इस प्रकार यहाँ पर मुख्यतः
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