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तत्वार्थसूत्र
[१.५. किस अपेक्षा से किया जा रहा है इस गुत्थी को सुलझाना ही निक्षेप मिनाको व्यवस्था का काम है। प्रयोजन के अनुसार एक ही
' शब्द के अनेक अर्थ हो जाते हैं। महाभारत में 'अश्वत्थामा हतः' युधिष्ठिर के इतने कहनेमात्र से युद्ध की दिशा ही बदल गई । 'आज महावीर भगवान का जन्म दिन है' यह सुनते ही सुषुप्त धार्मिक वृत्ति जाग उठती है। वह दिन महान दिन प्रतीत होने लगता है। इससे ज्ञात होता है कि एक ही शब्द प्रसंगानुसार विविध अर्थों का जतानेवाला हो जाता है। इस प्रकार यदि एक शब्द के मुख्य अर्थ देखे जाँय तो वे चार होते हैं। ये ही चार अर्थ उस शब्द के अर्थ को दृष्टि से चार भेद हैं। ऐसे भेद हीन्यास या निक्षेप कहलाते हैं। इनको जान लेने से प्रकृत अर्थ का बोध होता है और अप्रकृत अर्थ का निराकरण । इसी बात को ध्यान में रख कर सूत्रकारने प्रकृत सूत्र में निक्षेप के चार भेद किये हैं। इससे यहाँ सम्यग्दर्शन और जीवाजीवादि का क्या अथ इष्ट है यह ज्ञात हो जाता है। वे निक्षेप ये हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । १ --जिसमें व्युत्पत्ति की प्रधानता नहीं है किन्तु जो माता, पिता या इतर लोगों के संकेत बल से जाना जाता है वह अर्थ नाम निक्षेप का विषय है। जैसे-एक ऐसा आदमो जिसमें पुजारी के योग्य एक भी गुण नहीं हैं पर किसी ने जिसका नाम पुजारी रखा है वह नाम पुजारी है । २-जो वस्तु असली वस्तु की प्रतिकृति, मूर्ति या चित्र है या जिसमें असली वस्तु का आरोप किया गया है वह स्थापना निक्षेप का विषय है। जैसे किसी पुजारी की मूर्ति या चित्र
आदि । ३-जो अर्थ भाव का पूर्व या उत्तर रूप हो वह द्रव्य निक्षेप का विषय है। जैसे-जो वर्तमान में पूजा नहीं कर रहा है किन्तु कर चुका है या करेगा वह द्रव्यपुजारी है। जिस अर्थ में शब्द का व्युत्पत्ति
• नाम दो तरह के होते हैं-~-यौगिक
और रौदिक । पुजारी, रसोइया