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२.१.--.] पाँच भाव, उनके भेद और उदाहरण
समाधान-आत्मा का स्वभाव केवलज्ञान है जिसे केवलज्ञानावरण आवृत किये हुए है। तथापि वह पूरा आवृत नहीं हो पाता। अति मन्द ज्ञान प्रकट ही बना रहता है जिसे मतिज्ञानावरण आदि कर्म आवृत करते है। इससे स्पष्ट है कि केवलज्ञान को प्रकट न होने देना ज्ञानावरण के पांचों भेदों का कार्य है। केवलज्ञानावरण केवलज्ञान को साक्षात् रोकता है और मतिज्ञानावरण आदि परंपरा से। इसलिये यहां ज्ञानावरण कर्म के क्षय से केवलज्ञान प्रकट होता है यह कहा है।
शंका-केवलदर्शन को केवलदर्शनावरण कर्म श्रावृत करता है फिर यहाँ दर्शनावरण कर्म के क्षय से केवलदर्शन प्रकट होता है ऐसा क्यों कहा?
समाधान-आत्मा का स्वभाव केवलदर्शन है जिसे केवलदर्शनावरण आवृत किये हुए है। तथापि वह पूरा आवृत नहीं हो पाता। अति मन्द दर्शन प्रकट ही बना रहता है जिसे चक्षुदर्शनावरण, अचक्षु दर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण कर्म रोकता है। इससे स्पष्ट है कि केवलदर्शन को प्रकट न होने देना चक्षुदर्शनावरण आदि चारों आवरणों का कार्य है। केवलदर्शनावरण केवलदर्शन को साक्षात् रोकता है और शेष आवरण परंपरा से । इसलिये यहां दर्शनावरण कर्म के क्षय से केवलदर्शन प्रकट होता है यह कहा है।
शंका-क्या क्षायिक दान से अभय दान, क्षायिक लाभ से औदारिक शरीर की स्थिति में कारणभूत अनन्त शुभ परमाणु, क्षायिक भोग से कुसुमवृष्टि आदि और क्षायिक उपभोग से सिंहासन, चामर तथा छत्रत्रय आदि प्राप्त होते हैं ?
समाधानये क्षायिकदान आदि आत्मा के अनुजीवी भाव हैं। बाह्य सामग्री का प्राप्त कराना इनका कार्य नहीं है।
शंका-तो फिर अन्यत्र क्षायिक दान आदि का कार्य अभयदान आदि क्यों कहा?