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१. ६.] तत्त्वों के जानने के उपाय या प्रवृत्तिनिमित्त वर्तमान में बराबर घटित हो वह भाव निक्षेप का विषय है। जैसे-जो वर्तमान में पूजा करता है वह भाव पुजारी है। ___ इसी प्रकार सम्यग्दर्शन आदि के और जीव अजीव आदि तत्त्वों के भी चार चार निक्षेप किये जा सकते हैं परन्तु यहाँ वे सब भावरूप ही लिये हैं। इनमें से प्रारम्भ के तीन निक्षेप सामान्यरूप होने से द्रव्यार्थिक नय के विषय हैं और भाव पर्याय रूप होने से पर्यायार्थिक नय का विषय है ॥ ५॥
तत्त्वों के जानने के उपाय
प्रमाणनयैरधिगमः ॥ ६॥ प्रमाण, और नयों से पदार्थो का ज्ञान होता है।
जितना मी समीचीन ज्ञान है वह प्रमाण और नय इन दो भागों में बटा हुआ है। अंश-अंशी या धर्म-धर्मी का भेद किये बिना वस्तु का जो अखण्ड ज्ञान होता है वह प्रमाणज्ञान है तथा धर्म-धर्मी का भेद होकर धर्म द्वारा वस्तु का जो ज्ञान होता है वह नयज्ञान है । मतिज्ञान, अवधिज्ञान मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये चार ज्ञान ऐसे हैं जो धर्मधर्मी का भेद किये बिना वस्तु को जानते हैं इसलिये ये सबके सव प्रमाण ज्ञान हैं। किन्तु श्रुतज्ञान विचारात्मक होने से उसमें कभी धर्म-धर्मी का भेद किये बिना वस्तु प्रतिभासित होती है और कभी धर्म-धर्मी का भेद होकर वस्तु का बोध होता है। जब जब धर्म धर्मी का भेद किये विना वस्तु प्रतिभासित होती है तब तब वह श्रुतज्ञान प्रमाणज्ञान
आदि यौगिक शब्द हैं और गाय भैंस आदि रौदिक शब्द हैं। यौगिक शब्द जिस अर्थ को कहते हैं उसमें शब्द का व्युत्पत्तिनिमित्त घटित होता है और रौढिक शब्द जिस अर्थ को कहते हैं उसमें शब्द का प्रवृत्तिनिमित्ति घटित होता है।