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तत्त्वार्थसूत्र
[२.३६.-४९. शरीर शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ है जो प्रतिक्षण शोर्ण होता है। यद्यपि शरीर में यह गुण पाया जाता है पर जीव को संसार में रखने का यह मूल आधार है। जब तक जीव का इसके साथ सम्बन्ध है तब तक संसार है यह शरीर सामान्य का अर्थ है । औदारिक आदि शरीरों का अर्थ निम्न प्रकार है___ उदार का अर्थ महान् या बड़ा है । प्रकृत में इसका अर्थ स्थूल है। जो सब शरीरों में स्थूल है वह औदारिक शरीर है । जो शरीर कभी छोटा, कभी बड़ा, कभी एक, कभी अनेक, कभी हलका और कभी भारी आदि अनेक रूप हो सके वह वैक्रियिक शरीर है । जिसका मुख्य काम सूक्ष्म पदार्थ का निर्णय कराना है वह आहारक शरीर है। यह अकृत्रिम जिन मन्दिरों की वन्दना और वैराग्य आदि कल्याणकों के निमित्त से भी पैदा होता है। तेजोमय शुक्ल प्रभावाला तैजस शरीर*
* वैज्ञानिकों के आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि के लिये जो विविध प्रयोग चालू हैं तैजस शरीर की सिद्धि तो उनसे भी होती है । 'जयाजी प्रताप' के १७ जून १९३७ के अंक | आफ्रिका के एक विख्यात डाक्टर और एक इञ्जीनियर का साइटिस्टस सीक दी सोल नामक एक लेख प्रकाशित हुया था। उसमें उन्होंने अपने प्रयोग दिये हैं जिससे हम तैजस (विद्युत) शरीर की सिद्धि के सन्निकट पहुँच जाते हैं।
इसके लिये सर्व प्रथम उन्होंने यंत्र की सहायता से पशुओं की शक्ति का परिमाण निकाला। उनके इस प्रयोग का निष्कर्ष यह निकला कि 'प्रत्येक प्राणी में एक निश्चित परिमाण में शक्ति (विद्युत् ) होती है। मृत्यु के समय यह शक्ति निकल जाती है। अधिक बुद्धिमान प्राणियों में यह शक्ति अधिक परिमाण में रहती है । विद्युत का परिमाण जीवन भर ध्रुव रहता है। मनुष्य में विद्युत शक्ति का परिमाण ५०० वोल्ट रहता है।' यह एक प्रयोग का फल है। बहुत सम्भव है कि इससे श्रागे चलकर स्पष्टतः तैजस शरीर की सिद्धि हो जाय ।