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३. २७-३४.] शेष कथन
१५५ हैं और इसके आगे अन्त तक परिवार नदियाँ आधी-आधी होती गई हैं ।। २०-२३ ॥
भरतादि क्षेत्रों का विस्तार और विशेष वर्णनभरतः षड्विंशतिपञ्चयोजनशतविस्तारः षट् चैकोनविंशतिभागा योजनस्य ॥ २४ ॥
तद्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः ॥ २५ ॥
उत्तरा दक्षिणतुल्याः ।। २६ ।। भरतवर्ष का विस्तार पाँच सौ छब्बीस योजन और एक योजन का छह वटे उन्नीस भाग है। विदेहवर्ष पर्यन्त पर्वत और क्षेत्र इससे दूने दूने विस्तारवाले हैं।
उत्तर के पर्वत और क्षेत्र आदि दक्षिण के पर्वत और क्षेत्र आदि के समान हैं।
जम्बूद्वीप में भरतवर्ष के विस्तार से हिमवान् पर्वत का विस्तार दूना है। हिमवान् पर्वत के विस्तार से हैमवतवर्ष का विस्तार दूना है।
... यह दुने दूने का क्रम विदेहवर्ष तक है फिर उसके
तो आगे पर्वतों और क्षेत्रों का विस्तार आधा-आधा का विस्तार
है। इस हिसाब से भरतवर्ष का विस्तार पाँच सौ छब्बीस और छह वटे उन्नीस योजन प्राप्त होता है। हिमवान् पर्वत का विस्तार इससे दूना है। विदेह वर्ष तक विस्तार इसी प्रकार दूना दूना होता गया है। और उत्तर दिशा का कुल वर्णन दक्षिण दिशा के वर्णन के समान है॥२४-२६॥
शेष कथनभरतैरावतयोद्धिहासौ षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम् ॥२७॥
र पर्वतों