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३. ९-२३.] जम्बूद्वीप में क्षेत्र आदि का वर्णन १४९ जाना जाता है पर जम्बूद्वीप का व्यास, रचना व आकार नहीं ज्ञात
होता। यह अगले सूत्र में बतलाया है। जम्बूद्वीप व्यास थाली के समान गोल है इसलिये उसका उत्तर दक्षिण
और पूर्व-पश्चिम एक समान व्यास है जो एक लाख योजन है। इससे लवण समुद्र का व्यास दूना है। इसी प्रकार आगे के द्वीप और समुद्रों का व्यास उत्तरोत्तर दूना-दूना है। अन्त तक विस्तार का यही क्रम चला गया है। अन्त में स्वयंभूरमण द्वीप को वेष्ठित किये हुए स्वयंभूरमण समुद्र है। यहाँ स्वयंभूरमण द्वीप का व्यास अपने पूर्ववर्ती समुद्र के व्यास से दूना है और स्वयंभूरमण द्वीप के व्यास से स्वयंभूरमण समुद्र का व्यास दूना है। __जम्बूद्वीप को छोड़कर शेष सब द्वीपों और समुद्रों की रचना चूड़ी के समान है। जैसे हाथ को घेर कर चूड़ी स्थित रहती है वैसे ही
जम्बूद्वीप को घेरकर लवण समुद्र स्थित है। लवण रचना व आहात समद को घेरकर धातकीखण्ड द्वीप स्थित है। इसी प्रकार अन्ततक यहो क्रम चला गया है ।। ८॥ ___जम्बूद्वीप और उसमें स्थित क्षेत्र, पर्वत और नदी श्रादि का विस्तार से वर्णन___ तन्मध्ये मेरुनाभिवृत्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीपः ॥ ९॥
भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षा क्षेत्राणि।१०।
तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवनिषधनील रुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः ॥ ११ ॥
* हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममयाः ॥ १२ ॥ * श्वेताम्बर तत्वार्थसूत्र में इसके प्रारम्भ में 'तत्र' पद अधिक है।