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५. ४-७.] मूल धर्मों का साधर्म्य और वैधर्म्य २०५ इस दृष्टि से पृथिवी, जल और वायु स्वयं ही पुद्गल में अन्तर्भूत हो जाते हैं। अग्नि का अन्तर्भाव तो पहले कर ही आये हैं। इस प्रकार प्रत्येक दृष्टि से विचार करने पर ये पृथिवी आदि चारों एक पुद्गल द्रव्य रूप हैं यह सिद्ध होता है इन्हें सर्वथा स्वतन्त्र मानना उचित नहीं। ___ दूसरे और तीसरे सूत्र द्वारा धर्मास्तिकाय आदि पाँचों द्रव्य हैं यह बतलाया गया है। अर्थात् द्रव्यत्व की अपेक्षा इन सबमें समानता पाई जाती है यह उक्त कथन का तात्पर्य है। ३।
मूल द्रव्यों का साधर्म्य और वैधयं
नित्यावस्थितान्यरूपाणि । ४ । रूपिणः पुद्गलाः । ५।
आ आकाशादेकद्रव्याणि । ६ । निष्क्रियाणि च । ७। उक्त द्रव्य नित्य हैं, अवस्थित हैं और अरूपी हैं । पुद्गल रूपी अर्थात् मूत हैं। उक्त पाँच में से आकाश तक के द्रव्य एक एक हैं। और निष्क्रिय हैं।
इन चार सूत्रों द्वारा उक्त पाँच द्रव्यों का साधर्म्य और वैधर्म्य दिखलाया गया है। साधय से किसी धर्म की अपेक्षा समानता
और वैधर्म्य से किसी धर्म की अपेक्षा असमानता ली जाती है। नित्यत्व और अवस्थितत्व ये दो धर्म ऐसे हैं जो उक्त पाँचों द्रव्यों में समान हैं। धर्मास्तिकाय आदि पाँचों द्रव्य नित्य हैं अर्थात् वे कभी भी अपने स्वरूप से च्युत नहीं होते और अवस्थित हैं अर्थात् वे