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१७० तत्त्वार्थसूत्र
[४. ६. प्रथम दो निकायों में इन्द्रों की संख्या का नियमपूर्वयो-न्द्राः॥६॥ प्रथम दो निकायों में दो-दो इन्द्र हैं। ___ भवनवासी के दस प्रकार के देवों में और व्यन्तर के आठ प्रकार के देवों में दो-दो इन्द्र होते हैं। यथा-असुरकुमारों के चमर और वैरोचन ये दो इन्द्र हैं। इसी प्रकार नागकुमारों के धरण और भूतानन्द, विद्यत्कुमारों के हरिसिंह और हरिकान्त, सुपर्णकुमारों के वेणुदेव और वेणुधारी, अग्निकुमारों के अग्निशिख और अग्निमाणव, वातकुमारों के वैलम्ब और प्रभञ्जन, स्तनितकुमारों के सुघोष और महाघोष, उदधिकुमारों के जलकान्त और जलप्रभ, द्वीपकुमारों के पूर्ण और वशिष्ट तथा दिक्कुमारों के अमितगति और अमितवाहन ये दो-दो इन्द्र हैं। व्यन्तरों में निन्नरों के किन्नर और किम्पुरुष, किम्पुरुषों के मत्पुरुष
और महापुरुष, महोरगों के अतिकाय और महाकाय, गन्धर्वो के गीतरति और गीतयश, यक्षों के पूर्णभद्र और मणिभद्र, राक्षसों के भोम और महाभीम, भूतों के प्रतिरूप और अप्रतिरूप तथा पिशाचों के काल और महाकाल ये दो दो इन्द्र हैं।
भवनवासी और व्यन्तर इन दो निकायों में दो-दो इन्द्र बतलाने से शेष दो निकायों में दो-दो इन्द्रों का अभाव सूचित होता है। ज्योतिषियों में एक चन्द्र ही इन्द्र माना गया है। किन्तु चन्द्र असंख्यात हैं इसलिये ज्योतिषियों में इतने ही इन्द्र हुए। तथापि जाति की अपेक्षा ज्योतिषियों में एक इन्द्र गिना जाता है। वैमानिक निकाय के कल्पोपपन्न भेद में ही इन्द्र माना जाता है। यद्यपि कल्प सोलह हैं तथापि इनमें इन्द्र बारह ही हैं क्योंकि प्रारम्भ के चार कल्गों में चार इन्द्र हैं। इसी प्रकार अन्त के चार कल्पों में भी चार इन्द्र हैं। किन्तु मध्य के आठ कल्पों में कुल चार ही इन्द्र है, इन इन्द्रों के नाम कल्प के अनुसार है। जहाँ दो कल्पों में एक इन्द्र है वहाँ प्रथम-प्रथम कल्प के अनुसार इन्द्र का नाम