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तत्त्वार्थ सूत्र [५.२३-२४. । गया है कि दीप्त पट्टियों की ही भाँति अदीप्त पट्टियों ( Dark bands) में से भी प्रकाश वैद्युत रीति से ( Photo-clectrically ) विद्युदणु निकलते हैं जो गणना यन्त्र से गिने जा सकते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि अदीप्त पट्टी में भी ऊर्जा होती है और इसलिये अदीप्त पट्टी भी प्रकाशाभावात्मिका नहीं है।
शास्त्रों में छाया के वर्णादिविकारपरिणता और प्रतिबिम्बमात्रात्मिका इस प्रकार जो दो भेद बतलाये हैं सो वे छाया के इन सब प्रकारों को ध्यान में रखकर ही लिखे गये हैं। इससे सिद्ध है कि छाया भी पौद्गलिक है।
नैयायिक और वैशेषिक तम को सर्वथा अभाव रूप मानते हैं पर नेत्र इन्द्रिय से उसका ज्ञान होता है इसलिये उसे सर्वथा अभाव रूप नहीं माना जा सकता। आधुनिक विज्ञान भी इसे अभावरूप नहीं मानता। वैज्ञानिकों के मतानुसार तम (Darkness ) में भी उपरक्त तापकिरणों ( Infrared heat rays ) का सद्भाव पाया जाता है जिनसे उल्लू और बिल्ली की आँखें और भाचित्रीय पट ( Photografic Plates) प्रभावित होते हैं। इस प्रकार तम का दृश्य प्रकाश से भिन्न पौद्गलिक रूप से अस्तित्व सिद्ध होता है। वह सर्वथा अभावरूप नहीं है।
सूर्य आदि का उष्ण प्रकाश आतप कहलाता है और चन्द्र, मणि तथा जुगुनू आदि का ठंडा प्रकाश उद्योत कहलाता है। अग्नि से इन दोनों में अन्तर है। अग्नि स्वयं उष्ण होती है और उसकी प्रभा भी उष्ण होती है। किन्तु आतप और उद्योत के विषय में यह बात नहीं है। आतप मूल में ठंडा होता है। केवल उसकी प्रभा उष्ण होती है
और उद्योत मूल में भी ठंडा होता है और उसकी प्रभा भी ठंडी होती है।